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भाजपा जिलाध्यक्ष ने किया जिला अस्पताल का निरीक्षण.. इधर दमोह से जबलपुर इलाज का सफर: महिला के इलाज पर 4 लाख खर्च, निजी अस्पताल और एंबुलेंस सेवा पर उठे सवाल..

भाजपा जिलाध्यक्ष ने किया जिला चिकित्सालय का निरीक्षण.. दमोह भाजपा जिलाध्यक्ष श्याम शिवहरे ने 6 अपैल स्थापना दिवस से 14 अपैल डॉ आम्बेडकर जयंती तक होने वाले कार्यक्रम अंतगर्त बस्ती चलो अभियान के अंतगर्त जिला चिकित्सालय का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि भाजपा स्थापना दिवस से प्रारंभ हुए कार्यक्रम एवं बस्ती चलो अभियान अंतगर्त जिला चिकित्सालय का निरीक्षण किया और सरकार ने द्वारा जिला चिकित्सालय के उन्नयन और सुविधाओं के विस्तार का जो महत्वपूर्ण कार्य किया है उसकी जानकारी ली।
बस्ती चलो में सभी पदाधिकारी और कार्यकर्ता अपने आसपास स्थित मंदिर, आंगनबाड़ी केंद्र, विद्यालय, सार्वजनिक भवन आदि में स्वच्छता एवं सेवा कार्य कर रहें। निरीक्षण के दौरान जिला मंत्री संजय यादव, जिला मीडिया प्रभारी राघवेंद्र सिंह परिहार, बृज गर्ग, दीनदयाल नगर मंडल अध्यक्ष राजेन्द्र चौरसिया, कपिल शुक्ला, सुनील यादव अरूण सोनी, श्याम दुबे, संदीप शर्मा, इंद्र कुमार चौरहा, देवल कोरी, रामकुमार अहिरवाल साथ रहें।

दमोह से जबलपुर इलाज का सफर: महिला के इलाज पर 4 लाख खर्च, निजी अस्पताल और एंबुलेंस सेवा पर उठे सवाल.. दमोह। स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का एक और दर्दनाक उदाहरण सामने आया है। ग्राम गनियारी सिमरिया, थाना पन्ना निवासी 28 वर्षीय महिला भूरी पति बलदेव दहाय ने कुछ दिनों पहले कीटनाशक का सेवन कर लिया था। हालत गंभीर होने पर परिजनों ने महिला को हटा स्वास्थ्य केंद्र पहुँचाया, जहां से उसे दमोह जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। दमोह जिला अस्पताल में इलाज के दौरान मरीज की स्थिति और बिगड़ती देख उसे 24 मार्च को जबलपुर रेफर कर दिया गया। इस दौरान 108 एंबुलेंस सेवा उपलब्ध नहीं हो सकी, जिससे परिजनों को मजबूरी में 3200 रुपये किराए पर एक निजी एंबुलेंस करना पड़ा। मरीज को हेल्थसिटी मल्टी-स्पेशलिटी हॉस्पिटल, जबलपुर में भर्ती कराया गया।

48 घंटे का वादा, दो हफ्ते तक चला इलाज.. परिजनों के अनुसार, जबलपुर पहुँचने पर अस्पताल प्रबंधन ने कहा कि 48 घंटे में मरीज की हालत सामान्य हो जाएगी। परंतु 48 घंटे बीतने के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ और इलाज 7 दिन तक चलता रहा। इस दौरान महिला कोमा में रही। सात दिन बाद उसे होश आया लेकिन स्थिति फिर भी स्थिर नहीं हो सकी। इलाज के नाम पर रोजाना भारी खर्च होता रहा और बिल लगातार बढ़ता गया।कुल मिलाकर इलाज पर लगभग 4 लाख 15 हजार रुपये खर्च हो चुके थे। जब परिवार के पास पैसा खत्म हो गया, तो अस्पताल प्रबंधन ने कहा कि या तो भुगतान करें या मरीज को अस्पताल से ले जाएं। मजबूर परिजनों ने कुछ छूट की गुहार की, जिस पर अस्पताल ने 50 हजार रुपये की राहत दी। फिर भी भारी बकाया बिल चुकाकर मरीज को 9 अप्रैल को वापस दमोह जिला अस्पताल लाया गया।

दमोह जिला अस्पताल के ICU में फिर भर्ती.. प्राइवेट एंबुलेंस सेवा के माध्यम से 1500 रुपये किराए पर मरीज को 250 किलोमीटर दूर दमोह लाया गया और जिला अस्पताल के ICU में फिर से भर्ती किया गया। मरीज की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है।
निजी अस्पतालों और एंबुलेंस सेवाओं पर गंभीर आरोप..मरीज के पति बलदेव दहाय ने बताया कि उन्हें एंबुलेंस संचालकों ने यह कहकर जल्दी-जल्दी प्राइवेट अस्पताल भेजा कि यदि तत्काल इलाज नहीं हुआ तो मरीज की जान चली जाएगी। सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने की इच्छा के बावजूद उन्हें निजी अस्पताल भेजा गया, जहाँ इलाज के नाम पर लाखों रुपये वसूले गए। बलदेव ने कहा कि यदि समय पर सही जानकारी मिलती और सरकारी अस्पताल में इलाज होता तो शायद इतने बड़े आर्थिक बोझ का सामना नहीं करना पड़ता। परिजनों ने यह भी आरोप लगाया कि दमोह जिला अस्पताल सिर्फ "रैफर" करने का काम करता है, जबकि गंभीर मरीजों का इलाज करने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। निजी एंबुलेंस और निजी अस्पतालों का गठजोड़ मरीजों के परिजनों की मजबूरी का फायदा उठाकर मनमाने पैसे वसूलने में लगा है।
स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन पर उठे सवाल.. यह मामला उजागर करता है कि किस तरह से स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से मरीजों और उनके परिजनों को न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक शोषण भी झेलना पड़ रहा है। गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार इलाज के बोझ से टूट रहे हैं, जबकि जिम्मेदार अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं। परिजनों ने सरकार और जिला प्रशासन से मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही जिला अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की भी मांग उठाई है, ताकि भविष्य में किसी और परिवार को इस तरह की पीड़ा न झेलनी पड़े।

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