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डिलीवरी के बाद नव विवाहिता की मौत, जिला अस्पताल के बाहर शव रखकर प्रदर्शन, लापरवाही के आरोप.. इधर गर्भवती महिला और उसके जुड़वा बच्चों की मौत से उठे गंभीर सवाल

जिला अस्पताल के बाहर शव रखकर प्रदर्शन..

दमोह।  जिला अस्पताल में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है बाद रात की हो या फिर दिन की। डॉक्टरों की कमी के बीच मरीजों की अनदेखी लापरवाही जैसे हालत में बीते बारह घंटे में दो जुड़वा बच्चों सहित दो माताओ की मौत हो जाने के दुखद घटनाक्रम ने अस्पताल के सिस्टम बनाम व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जिला अस्पताल गेट के बाहर मंगलवार शाम आरिफ खान के परिजनों ने स्ट्रेचर पर रखे शव के साथ देर तक प्रदर्शन करते हुए डॉक्टर पर लापरवाही तथा सिस्टरो के भरोसे अस्पताल चलने के आरोप लगाए। दरअसल फारुख खान की पत्नी साहिबा 21 वर्ष को दो दिन पहले डिलीवरी हेतु जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उनकी नॉर्मल डिलीवरी बताई गई थी। सिस्टर के भरोसे डिलीवरी के बाद महिला की ब्लीडिंग ज्यादा होने से हालत बिगड़ गई। चार यूनिट ब्लड लगने के बाद भी हालात में सुधार नहीं हुआ तो डॉक्टर ने जबलपुर रेफर कर दिया। जबलपुर ले जाते समय रास्ते में दोपहर 2 बजे साहिबा की मौत हो जाने पर परिजन वापस जिला अस्पताल लेकर आ गए। 
करीब 3 घंटे बाद तक तहसीलदार के बयान लेने नहीं पहुंचे तथा पोस्टमार्टम आदि की कार्रवाई नहीं होने से परिजनों के सब्र का बांध टूट पड़ा तथा यह लोग स्ट्रेचर पर रखे शव के साथ अस्पताल के बाहर आ गए। देर तक मेन गेट के बाहर प्रदर्शन चलता रहा। वही बाद में तहसीलदार ने समझाइस देकर प्रदर्शन खत्म कराते हुए परिजनों के बयान लिए। इसके बाद यह प्रदर्शन खत्म हुआ। बताया जा रहा है कि लगातार ब्लीडिंग की वजह से खून की कमी के कारण प्रसूता की मौत हुई है इसकी जिम्मेदारी लेने को डॉक्टर तैयार नहीं है। इसके पूर्व दमोह जिला अस्पताल में बीती रात दो जुड़वा बच्चों और उनकी मां की ऑपरेशन के बाद मौत हो गई थी।  इस मामले की मौत की खबर ने सभी को झकझोर कर रख दिया है।
गर्भवती महिला और उसके जुड़वा बच्चों की मौत से उठे गंभीर सवाल.. सोमवार देर रात जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलने वाला एक दर्दनाक मामला सामने आया है। एक गर्भवती महिला,आरती ठाकुर 29 वर्ष निवासी मगरोन जिसकी  हालत बिगड़ने पर निजी हॉस्पिटल से जिला अस्पताल रेफर किया गया। लेकिन वहां शिफ्टिंग के दौरान उसकी मौत हो गई। सूत्रों के अनुसार, महिला के गर्भ में दो बच्चा पल रहे थे, लेकिन उन्हें भी नहीं बचाया जा सका , परिजनों ने आरोप लगाया कि महिला का सीजर ऑपरेशन जिला अस्पताल में किया जाना था, लेकिन डॉक्टरों की टीम उपलब्ध थी या नहीं, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। यदि समय पर सही उपचार मिलता, तो शायद जच्चा और उसके दोनों बच्चे बच सकते थे।
वही मीडिया के एवं सूत्रों के अनुसार, पहले जिस फातिमा नर्सिंग होम में महिला का इलाज चल रहा था, उसे पहले ब्लैकलिस्ट किया जा चुका था। इसके बावजूद यह निजी क्लीनिक बिना किसी रोक-टोक के चल रहा है। यह जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। जिला अस्पताल में सीजर के लिए डॉक्टरों की टीम उपलब्ध थी या नहीं? समय रहते महिला को सही उपचार क्यों नहीं मिल पाया? क्या प्रशासन ने नर्सिंग होम की नियमित जांच की? मृतका के पति लोकेंद्र ठाकुर ने बताया कि उनकी पत्नी और बच्चों की जान सही समय पर इलाज न मिलने की वजह से गई। उन्होंने प्रशासन से दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। अब तक कोई भी जिम्मेदार अधिकारी इस मामले पर खुलकर सामने नहीं आया है। 
 कुल मिलाकर रेफर केंद्र बनकर रह गए जिला अस्पताल की अव्यवस्थाओं की खबरों के बाद व्यवस्था में सुधार के बजाय खबरों के खंडन की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। यहां तक की सिविल सर्जन जैसे जिम्मेदार डॉक्टर कार्य नहीं कर पाने की बात करते हुए सीएमएचओ को जिम्मेदारी से मुक्त करने पत्र सौंपने जैसी बात कर चुके हैं।

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