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दमोह कोर्ट ने दहेज लोभी पति को दिया 10 वर्ष का कठोर कारावास और जुर्माना.. परेशान होकर पत्नी ने फांसी लगाकर की थी आत्म हत्या.. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों को भी माना आधार..

दहेज लोभी पति को 10 वर्ष का कठोर कारावास

दमोह। संतोष कुमार गुप्ता अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा दहेज लोभी पति के द्वारा मोटरसाइकिल की मांग के लिए दी जा रही मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना से परेशान होकर पत्नी द्वारा की गई आत्महत्या के दुष्प्रेरण का दोषी मानते हुए आरोपी पति को भादवि की धारा 498 ए एवं 304 बी के अंतर्गत 10 वर्ष के कठोर कारावास एवं एक हजार रुपए के जुर्माने से दंडित किया है। मामले में शासन की ओर से पैरवी शासकीय अभिभाषक राजीव बद्री सिंह ठाकुर द्वारा की गई।
 अभियोजन अनुसार मामला इस प्रकार है, थाना दमोह देहात क्षेत्रांतर्गत ग्राम हिरदेपुर निवासी आरोपी राजेश उर्फ मिनी रजक पिता मिठ्ठू लाल रजक (31) का विवाह नीतू रजक के साथ  वर्ष 2018 में हुआ था।शादी के बाद से ही आरोपी दहेज में मोटरसाइकिल के लिए ससुराल वालो से मांग करता था, परंतु ससुराल वाले आर्थिक स्थिति कमजोर होने से आरोपी की मांग पूरी नहीं कर पा रहे थे। आरोपी मोटरसाइकिल नहीं मिलने के कारण अपनी पत्नी नीतू को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देते हुए मारपीट करता था। परेशान होकर नीतू ने दिनांक 5 जुलाई 2022 को अपनी ससुराल हिरदेपुर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने मायके वालों के बयान के आधार पर आरोपी को घटना में दोषी मानकर मामला दर्ज कर न्यायालय में पेश किया। 
अभियोजन साक्ष्य उपरांत न्यायालय में आरोपी की ओर से तर्क प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि मृतिका मंदबुद्धि थी और आरोपी से लड़ाई झगड़ा करती थी, इसकी शिकायत उसने थाने में भी की थी, तब परिवार परामर्श केंद्र से सुलह हुई थी,आरोपी की ओर से यह भी तर्क प्रस्तुत किए गए कि शादी एवं घटना के बीच में 4 वर्ष का अंतर था अगर मृतिका के साथ दहेज की मांग के लिए मारपीट की गई होती तो मारपीट के बारे निश्चित ही थाने में रिपोर्ट करते, जो नहीं होने से साक्षियो के कथन अविश्वसनीय है। सरकारी वकील राजीव बद्री सिंह द्वारा भी न्यायालय में अपने तर्क प्रस्तुत किये। न्यायालय ने अभियोजन द्वारा प्रस्तुत तर्क से सहमत होकर आरोपी को सजा सुनाते हुए अपने निर्णय में लिखा कि मृतिका के साथ मारपीट की रिपोर्ट नहीं होने से संपूर्ण मामले को अविश्वसनीय इसलिए नहीं मान सकते क्योंकि अक्सर पारिवारिक मामलों में कोई भी पक्ष प्रायः रिपोर्ट इसलिए नहीं करते है क्योंकि इससे परिवार एवं पारिवारिक संबंधों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। न्यायालय ने यह भी माना कि अगर पत्नी को उसके पति द्वारा माता-पिता या रिश्तेदारों से मिलने से रोका जाता है तो यह भी मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आता है, इस मामले में मृतिका की बहन नीमा को स्वयं आरोपी की ओर से सुझाव दिया गया था कि वह उसके खिलाफ इसलिए गवाही दे रही है क्योंकि वह मृतिका को उससे मिलने नहीं देता था 
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों को भी माना आधार.. निर्णय में न्यायालय ने हाईकोर्ट के निर्णय उमाशंकर उर्फ मुकेश बनाम मध्यप्रदेश शासन एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्णय दीनदयाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्त किया था कि जहां आरोपी मृतिका पत्नी की आत्महत्या का कारण नहीं बता सकता, वहा उसकी दोषसिद्धि उचित होगी। इन दोनों निर्णय को इस मामले अनुसार मानते हुए आरोपी को कारावास और जुर्माना की सजा सुनाई।

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