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आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज का 51 वा समाधि दिवस.. कुंडलपुर में आचार्य श्री समय सागर जी के तथा दमोह में निर्यापक मुनि सुधा सागर जी के ससंघ सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया

कुंडलपुर में आचार्य ज्ञानसागर जी का समाधि दिवस
कुंडलपुर दमोह ।सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर प्रातः पूज्य बड़े बाबा का अभिषेक ,शांति धारा ,पूजन ,विधान हुआ ।पूज्य आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ,आचार्य श्री समय सागर जी महाराज की भक्ति भाव से पूजन हुई। 
निर्यापक श्रमण योग सागर जी महाराज द्वारा पूजन का वाचन किया गया ।अभय बनगांव द्वारा आचार्य श्री समय सागर जी महाराज को शास्त्र दान किए गए। इस अवसर पर ज्येष्ठ आर्यिका श्री गुरुमति माताजी ने आचार्य ज्ञान सागर महाराज के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा आज का यह पर्व जीवन में धर्म रूपी शिखर पर कलशारोहण के समान है। जब मंदिर होगा तो उस पर शिखर होगा, शिखर होगा तो उस पर कलशारोहण भी आवश्यक है। जिन महान आत्माओं ने आज तक जिस रत्नात्रय रूपी धर्म को धारण किया है उनके जीवन में वह शिखर का निर्माण हुआ उन्होंने कलशारोहण किया है। आज उनका 51 वां समाधि दिवस महान पर्व है ।एक पर्व ऐसा है जो जो साधक रहेंगे मुक्ति ना हो जावे जब तक पाने की लालसा रहेगी ।गुरु नाम गुरु आचार्य ज्ञान सागर जी थे जो ज्ञान देखा जा रहा है उस ज्ञान को देने वाले स्रोत थे ।उनके ज्ञान की सुगंधि सारे ब्रह्मांड में सुगंधित हो रही है ।एकमात्र श्रेय आचार्य ज्ञान सागर जी को है। आचार्य ज्ञान सागर जी ने अपने जीवन को ही सुभाषित नहीं किया है उन्होंने कई रत्न दिए और कई रत्नत्रय के पुष्प दिए एक पुष्प वह था चैतन्य महाकाव्य जिसका नाम आचार्य विद्यासागर है जिनको आज भी उनके उपकार को भुलाया नहीं जा सकता ।इस अवसर पर निर्यापक श्रमण मुनि श्री अभय सागर जी महाराज ने कहा आचार्य भगवंत ज्ञान सागर जी महाराज के जीवन के कुछ प्रसंग जिनसे लोग अनभिज्ञ से हैं ऐसी दो-चार बातें आपके सामने रखने का प्रयास कर रहे हैं ।आचार्य भगवन ज्ञान सागर जी के विषय में भारत शासन से कुछ विशिष्ट कार्य हो एक डाक टिकट जारी करवाने का प्रयास करवाया  

।एक समस्या खड़ी हुई शासन के रिकॉर्ड अनुसार जन्मदिवस जन्मस्थान मृत्यु दिवस मृत्यु स्थान आवश्यक होता है। जन्म स्थान तो राड़ेली मिल गया 82 वर्ष उम्र में संलेखना हुई होगी ।एक पंडित जी से उनकी कुंडली एवं पांचो भाइयों की कुंडली उपलब्ध हुई तीन भाइयों की कुंडली पंडित भुरामल जी के हाथ की बनी है मेरे पास उपलब्ध है। 1897 का जन्म था 24 अगस्त 1897 समय 12 बजकर कुछ मिनट पर  जन्म हुआ ।उन्होंने आचार्य वीर सागर जी के संघस्थ सभी साधुओं को पंडित भूरामल जी ब्रह्मचारी की अवस्था में अध्ययन कराया ।संघस्थ साधुओं को विद्या अध्ययन कराते थे। पांच-पांच महाकाव्य का सृजन करने वाले जयोदय महाकाव्य जैसे उत्कृष्ट साहित्य का सृजन करने वाले आचार्य भगवन थे।गंजबासौदा की बहन ने उनके साहित्य पर पीएचडी की है ।इस अवसर पर निर्यापक श्रमण मुनिश्री नियम सागर जी महाराज ने बताया संलेखना मरण का प्रसंग है संलेखना उन जीवों की अनिवार्य आवश्यक विशेष मरण है जिस मरण को वह साधक अपने जीवन को त्याग और तपस्या के मार्ग पर समर्पित करता है। त्याग और तपस्या मय जीवन संलेखना मरण के द्वारा सार्थक होता है। मंदिर बनता है समय अपेक्षित होता है अपेक्षित समय पर ही मंदिर की पूर्णता होती है ।

जितना समय मंदिर निर्माण के लिए लगता है उतना समय मृत्यु के लिए नहीं लगता। मैं आ रहा हूं कह कर भी आ सकता हूं और कहे बिना भी आ सकता हूं ।साधक सावधान होकर मरण का स्वागत करता है। मरण का स्वागत करने के लिए समय लग सकता है और नहीं भी लग सकता है ।स्वागत किया मरण कब होगा निश्चित नहीं स्वागत किया इसी वक्त मरण होगा आकस्मिक मरण की घटना घट सकती है। मृत्यु ही मृत्यु को दूर करने का साधन है इसमें कोई संदेह नहीं ।हम भी वही अवस्था प्राप्त करें जो अरिहंत प्रभु कर रहे हैं। यही उद्देश्य सभी साधक का रहता है। मरण के पांच प्रकार हुआ करते हैं। गुरु को हम याद करते हैं। इस अवसर पर निर्यापक श्रमण मुनि श्री योग सागर जी महाराज ने संस्मरण सुनाते हुए कहा आज पावन पर्व है महोत्सव है आज तो मृत्यु महोत्सव है। जिन्होंने अपने जीवन में जिनवाणी की आराधना करते-करते मृत्यु महोत्सव मनाने का लाभ हुआ आचार्य ज्ञान सागर महाराज का समाधि दिवस है। 1968-- 69 में 2 साल उनके चरण वंदन करने चरण रज लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।आचार्य ज्ञान सागर महाराज प्रवचन करते तो णमोकार मंत्र का मंगलाचरण करते थे ।उनके मुख से सुनते सुनते मुझे ज्ञान हुआ और मैं विद्या सरोवर में समा गया। ज्ञान सागर जी महाराज का दर्शन किया आज भी वह दृश्य हमे दिखाई देता है। उनकी कृपा से उनके आशीष से हम लोग यहां आए जिस निधि को उन्होंने प्राप्त किया है उस निधि को हमें भी प्राप्त करना है ।इस अवसर पर आचार्य भगवन श्री समय सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा जिनके जीवन में वैराग्य के क्षण नहीं आते उसका उपादान बहुत कमजोर है निमित्त मिलने के बाद भी वैराग्य के क्षण मिले। शब्द के माध्यम से अर्थ की गति हो अर्थ से भाव की गति होती जिस ज्ञान बोलते। योग उपादान से ही कार्य संपादित होते ।शब्द कुछ नहीं करते ऐसा नहीं किंतु शब्द एकमात्र माध्यम है शब्द के माध्यम से अर्थ को गति मिलती।शोक करने की आवश्यकता नहीं जिसका मरण हुआ उसका जन्म हुआ है किंतु मरण के उपरांत जन्म हो यह निश्चित नहीं ।पंडित पंडित मरण है मरण याने विश्राम विराम लग जाता है ।बार-बार जन्म और मरण का जो प्रसंग आता है आज तक संसारी प्राणी का जीवन चल रहा है आयु समाप्त होते ही आगे भव का उदय होता नया जीवन प्रारंभ होता पुराना विस्मृत हो जाता। संवेदन अलग संवेदन वर्तमान का होता है। किंतु अतीत में जो पर्याय होती है ज्ञान का विषय बन सकती है ।आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज की 75--80 की उम्र थी। आकुलता ना करें साथ-साथ प्रमाद न करें निरंतर पुरुषार्थ शील बने रहें।
दमोह में आचार्य ज्ञान सागर जी का समाधि दिवस मुनि श्री सुधा सागर जी के सानिध्य में मनाया गया

दमोह।
गुरु नाम गुरु आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज का 51वां समाधि दिवस समारोह निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज मुनि श्री प्रयोग सागर जी मुनि श्री सुब्रत सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में दिगंबर जैन धर्मशाला में अति उत्साह पूर्वक मनाया गया। इसके पूर्व प्रातकाल श्री जी के अभिषेक शांति धारा सामूहिक रूप से संपन्न की गई प्रथम शांति धारा करने का सौभाग्य निर्मल कुमार जैन सुनील महेंद्र करुणा वेजीटेरियन परिवार को प्राप्त हुआ। 

 दूसरी तरफ से शांति धारा का सौभाग्य रविन्द्र गांगरा शीशम वाला परिवार को प्राप्त हुआ। इसके पश्चात विभिन्न महिला मंडलों के द्वारा सुसज्जित पूजन सामग्री के साथ 51 जोड़ो एवं बालिकाओं एवं पुरुषों के द्वारा संगीतमय पूजन बहुत धूमधाम से संपन्न की गई मुनि श्री के पाद प्रक्षालन के पश्चात शास्त्र भेंट किया गया इस अवसर पर मुनि श्री प्रयोग सागर जी महाराज ने अपने मंगल प्रवचनों में कहा कि महापुरुषों का जीवन एवं चरित्र उनके जैसे बनने की प्रेरणा देता है एकलव्य की गुरु भक्ति इतिहास में प्रसिद्ध है क्योंकि उन्होंने गुरु द्रोणाचार्य के द्वारा गुरु दक्षिणा मांगने पर अपने दाहिने हाथ का अंगूठा दे दिया था इसी तरह आचार्य ज्ञान सागर जी ने अपने ही शिष्य को आचार्य पद देकर मान के मरदन की अतुलनीय मिसाल प्रस्तुत की।

 आचार्य ज्ञान सागर जी ने एक ऐसा योग्य शिष्य बनाया जिसने हजारों शिष्य पैदा कर दिए एक ऐसा हीरा उन्होंने तराशा जिसने लाखों हीरे तैयार कर दिए। इसके पश्चात निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि शिष्य अपने गुरु को ही भगवान मानता है गुरु आत्म कल्याण का मार्ग बताते हैं  आत्म कल्याण का मार्ग आरामदायक नहीं है दूसरों का कल्याण करना रसदार होता है किंतु वह स्वयं का कल्याण भूल जाता है किंतु महान शक्तियां पर कल्याण के साथ-साथ स्व कल्याण को नहीं भूलते।

 आचार्य ज्ञान सागर जी ने पर कल्याण के साथ-साथ आत्म कल्याण को भी केंद्र बिंदु बनाया उन्होंने मोक्षमार्ग और जैन संस्कृति को जीवित रखने के लिए अथक पुरुषार्थ किया उन्होंने धर्म की प्रभावन के लिए विद्याधर में महान आचार्य को देखकर दीक्षा दी एवं उन्हें को अपना गुरु मान कर इतिहास में एक अपूर्व घटना दर्ज कर दी विद्याधर को विद्यासागर के रूप में दीक्षा देकर न सिर्फ समाज पर वरन संपूर्ण मानव जाति पर महान उपकार किया है। संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रदीप शास्त्री द्वारा किया गया। शाम को जिज्ञासा समाधान के बाद 51 दीपों से मंगलमयी आरती की गई थी।
आज के आहार दाता पुण्यार्जक परिवार- गुरुवार को जैन धर्मशाला से पड़गाहन करके निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज को अपने चौक में ले जाकर आहार कराने का सौभाग्य सिद्धार्थ जैन फर्नीचर परिवार को प्राप्त हुआ।

मुनि श्री प्रयोग सागर जी के आहार अरविंद गुरु कृपा इलेक्ट्रिकल परिवार, मुनिश्री सुब्रत सागर जी महाराज के आहार आशीष भैया राज बस वाले परिवार में हुए। गंभीर सागर जी महाराज के आहार जिनेंद्र जैन नितिन हटा वाले परिवार के चौके में हुए।

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