भगवान में नहीं भक्त की भक्ति में चमत्कार होता है.. मुनि श्री सुधा सागर जी
दमोह।
नगर के श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में तीन निर्यापक मुनिश्री
सुधा सागर जी मुनि श्री प्रसाद सागर जी श्री वीर सागर जी सहित अन्य
मुनिराज के सानिध्य में सात दिवसीय श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर का
आयोजन वृहद्ध स्तर पर किया जा रहा है। शिविर प्रभारी डॉ प्रदीप शास्त्री
के निर्देशन में शुक्रवार को तीसरे दिन विविध शैक्षणिक संस्कार आयोजन
संपन्न हुए। जिसमे सैकड़ो की संख्या में बच्चों से लेकर महिला, युवा,
बुजुर्ग श्रावक जन शामिल हुए।
दिगंबर जैन धर्मशाला
में चल रही भक्तांबर क्लास के तीसरे दिन निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी
महाराज ने कहा कि भगवान में नहीं भक्त की भक्ति में चमत्कार होता है। भगवान
में अतिशय भक्त की भक्ति से आता है। धर्म में ताकत धर्मात्मा की शक्ति से
आती है मुनि चर्य मैं चमत्कार मुनि से आता है व्रत में चमत्कार व्रत करने
वाले से आता है। मुनि श्री ने कहा कि जैन धर्म में तीर्थंकरों का जन्म
पुण्य आत्माओं के उद्धार के लिए होता है पापियों के नाश के लिए नहीं। जब
दुनिया में धर्म की अभिवृद्धि होती है तो पुण्य शालियो के कल्याण के लिए
प्रभु जन्म लेते हैं। भक्ति वाद का मतलब भगवान से कुछ लेना नहीं है भक्त
भगवान को सब कुछ अर्पण करना चाहता है भक्ति का अर्थ भगवान मेरे लिए नहीं
वरन में उनके लिए बना हूं बड़े मेरी रक्षा करें यह भाव नहीं आना चाहिए..
यह
विनाश की ओर ले जाता दुर्योधन का उदाहरण है उसका यह दुर्गुण था की वह अपने
बड़ों से अपना हित चाहता था किंतु उसने स्वयं का नाश किया और बड़ों का भी
नाश कर दिया किंतु हनुमान जी अपने आराध्य भगवान रामचंद्र जी के संकट दूर
करने एक पैर पर खड़े रहे लक्ष्मण पर संकट आया तो पूरा पहाड़ उठा कर ले आए
किंतु स्वयं को जब रावण ने बंदी बना लिया तो खुद अकेले ही निपटा दिया वे
जीवन भर अपने आराध्य की रक्षा करते रहे किंतु कभी रामचंद्र जी से कुछ नहीं
चाहा आज का मनुष्य बड़ों से बहुत कुछ अपेक्षा करता है..
मां-बाप से बहुत कुछ
चाहता है मां बच्चों को क्या देती है वह रानी बनकर आती है और बच्चों के लिए
मेहतरानी बन जाती है, प्रभु क्या देते हैं उनकी भक्ति नाम स्मरण मात्र से
जन्म जन्म के पाप कट जाते हैं। संसारी प्राणियों के क्षण भर में संकट दूर हो
जाते हैं जिस तरह है अंजन चोर ने क्षण मात्र में णमोकार मंत्र के स्मरण से
अपने पापों को नष्ट कर लिया प्रभु की चरित्र चर्चा ही पापों को समूल नष्ट
कर देती है जिस तरह सूर्य के उदय से सरोवर में कमल अपने आप खिल जाते हैं।
भय की वजह से व्यक्ति निर्णय नहीं ले पाता.. मुनि श्री वीर सागर जी.. इसके
पूर्व प्रात काल 6 बजे जीने की कला क्लास में निर्यापक मुनि श्री वीर सागर
जी महाराज ने कहा कि भय के कारण व्यक्ति आज निर्णय नहीं ले पाता वह जीवन
भर सोचता रहता है भय की वजह से कदम आगे नहीं बढ़ा पाता और व्यक्ति की
उन्नति अवरुद्ध हो जाती है इसका कारण अवचेतन मन में गलत धारणाएं बैठ जाती
हैं..
जब हम किसी भी कार्य को ज्यादा इंपोर्टेंस देते हैं तो भय की उत्पत्ति
होने लगती है, और धीरे-धीरे यह हमारी आदत बन जाती है सबसे ज्यादा भय लोगों
को यह होता है कि लोग क्या कहेंगे दुनिया की ज्यादा नहीं सुनना चाहिए
क्योंकि लोग ना करो तो भी कहते हैं और करोगे तो भी कहते हैं दुनिया ने
बड़े-बड़े महापुरुषों को नहीं छोड़ा तो आप किस खेत की मूली हैं लोगों ने महावीर राम और सीता को भी लांछन लगाया तो वह सामान्य लोगों को कैसे छोड़
सकते हैं हर व्यक्ति से सलाय नहीं लेना चाहिए जो जानकार है तुम्हारा हित
चाहते हैं उसी से ही मार्गदर्शन लेना चाहिए बड़े बच्चों के साथ माता-पिता
को मित्र की भूमिका में आ जाना चाहिए।
आज की आहारचर्या के पुण्यार्जक परिवार..निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी को आहार देने का सौभाग्य राजेश जैन हथना
पवन जैन प्राचार्य परिवार को प्राप्त हुआ।
निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर
जी के आहार महेश बड़कुल, निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी के आहार आगत सागर
जी के परिवार में हुए। मुनि श्री प्रयोग सागर जी आहार सिद्धार्थ फर्नीचर
परिवार, मुनि श्री सुब्रत सागर के आहार अमरदीप लालू बर्तन परिवार, मुनि
श्री पदम सागर जी के आहार ब्रा.अमित भैया परिवार, मुनि श्री शीतल सागर जी
के राकेश नायक डॉ.गौरव नायक परिवार तथा गंभीर सागर जी को आहार देने का
सौभाग्य राजेश हिनौती वाले परिवार को प्राप्त हुआ।
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