मुनि संघ की जटाशंकर के समीप गौशाला में अगवानी
दमोह।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी महाराज एवं मुनि श्री प्रशाद सागर जी
महाराज प्रातः काल जटाशंकर के समीप स्थित गौशाला का निरीक्षण करने पहुचे।
गौशाला को और अधिक विकसित करने के लिए पदाधिकारियों को सुझाव दिए गौशाला
में सेवा कर रहे कर्मचारियों को आशीर्वाद दिया।
इस मोके पर कुंडलपुर कमेटी
के पूर्व अध्यक्ष संतोष सिंघई,जैन पंचायत अध्यक्ष सुधीर सिंघई, आलोक पलंदी,
सुनील वेजिटेरियन, रेशु सिंघई, गौरव जैन, पं अखिलेश जैन प्रदीप शास्त्री,
महेंद्र करुणा, पवन जैन, विकल्प जैन नरेंद्र शक्ति आदि की उपस्थिति रही।
इसके
पश्चात महाराज सिविल वार्ड भाई जी मंदिर पहुंचे जहां दर्शन उपरांत
उन्होंने सिविल वार्ड में प्रस्तावित धर्मशाला एवं आश्रम की जमीन का
निरीक्षण किया। इसके पूर्व मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने चौधरी मंदिर
पहुंचकर दर्शन किए तथा यहां प्रस्तावित धर्मशाला भूमि का निरीक्षण का
आशीर्वाद दिया।
धर्म आयतन से पाप करने वाले भयंकर दुर्गति को प्राप्त होते हैं..मुनि श्री सुधा सागर जी.. दमोह।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य श्री समय सागर जी के शिष्य
निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी एवं श्री प्रसाद सागर जी महाराज संघ सहित
श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर की में विराजमान है। मुनि संघ के
सानिध्य में प्रतिदिन विविध धार्मिक आयोजन में सैकड़ो लोग शामिल होकर धर्म
लाभ अर्जित कर रहे हैं।
दिगंबर जैन धर्मशाला में
सोमवार को प्रातः धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री सुधा सागर जी
महाराज ने कहा कि पथ में रहने वाले लोग लूटते हैं किंतु पथ बदनाम हो जाता
है इसी तरह धर्म करने वाले कुछ लोग गलत काम करते हैं और धर्म को बदनाम करते
हैं। कुछ दुष्ट लोग धर्म के स्थानों पर भी पाप कार्य करने से बाज नहीं
आते। धर्म आयतन से पाप करने वाले भयंकर दुर्गति को प्राप्त होते हैं।
दुर्योधन जिसके पास सारी महाशक्ति थी संसार की सभी महारथी उसके पास थे तात
श्री भी उसका साथ दे रहे थे वह उस समय संसार का सबसे पुण्यशाली व्यक्ति था..
किंतु एक दुर्गण से पापीआत्मा बन गया वह अपने से बड़ों को भी अपनी
इच्छानुसार चलाना चाहता था वह सभी को अपनी इच्छा अनुसार लड़वाना चाहता था
वह सोचता था सभी लोग मेरे लिए लड़ेंगे ऋषभदेव की गोदी में खेलने वाला पोता
मरिच जगत का सबसे बड़ा पापी बना क्योंकि वह ऋषभदेव को अपनी इच्छा अनुसार
चलाना चाहता था बड़ों की छाया मिले और उन्हें तुम अपने अनुसार चलाना चाहते
हो तो तुम भी आज के दुर्योधन से कम नहीं हो इच्छा अनुसार कार्य करने से
हमें पापी की संज्ञा प्राप्त होती है दुर्योधन कहता है मुझे आपसे चाहिए आप
नहीं जबकि अर्जुन श्री कृष्ण से कहते हैं मुझे आप चाहिए..
आपसे नहीं दोनों की
विचारधारा में बहुत अंतर है हमें विचार करना है की हमें मां-बाप से चाहिए
या मां-बाप चाहिए हमें अपने भाई से चाहिए या भाई चाहिए पति से चाहिए या
पति चाहिए सीता जी ने कहा था मुझे राम से नहीं चाहिए मुझे राम चाहिए और
इसीलिए वे उनके साथ वनवास चली गई थी यही कारण है कि राम से पहले सीता का
नाम लिया जाता है और सब सीताराम बोलते हैं। मंगलवार को प्रातः बेला में
मुनि संघ सानिध्य में मुनि श्री पदम सागर जी का दीक्षा दिवस मनाया जाएगा।
इन परिवारों को मिला आहारचार्य का सौभाग्य..
सोमवार
को निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य पंडित
प्रदीप शास्त्री मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य
जैन पंचायत अध्यक्ष सुधीर सिंघई मुनि श्री पदम सागर जी को पंडित सुरेश
शास्त्री मुनि श्री शीतल सागर जी को शैलेंद्र मयूर परिवार को गंभीर सागर जी
महाराज को आहार देने का सौभाग्य महावीर टेंट हाउस परिवार को प्राप्त हुआ।
जैन धर्मशाला में अहिंसा अलंकरण प्रदान किया गया..
शाकाहार उपासना परिसंघ दमोह के द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाने वाला अहिंसा महावीर चक्र एवं धर्म महावीर चक्र आज दिनांक 13 मई 2024 को अहिंसा अलंकरण समारोह में निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में साइ 5:30 बजे जिज्ञासा समाधान में आयोजित किया गया। इसमें तेंदूखेड़ा गौशाला अध्यक्ष संजय पारसमणि एवं दमोह के दानवीर संजय जैन अरिहंत को पुरस्कारों से अलंकृत किया गया।
दमोह
।सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर की पावन धरा से महासमाधिधारक संत
शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य
आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से निर्यापक श्रमण मुनि
श्री वीर सागर जी महाराज ,क्षुल्लक श्री मनन सागर जी, क्षुल्लक श्री
विचार सागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री विरल सागर जी महाराज का मंगल विहार
हुआ।
परिणामों को परिवर्तित करने का नाम ही मोक्ष मार्ग है..मुनि श्री महासागर जी
दमोह।
सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र, जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत
शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य
आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से पूज्य मुनि श्री
महासागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा जब तक स्वयं के चित्त में
मुक्ति की अवधारणा जागृत नहीं होगी तब तक मुक्ति का लाभ आत्मा को नहीं मिल
सकता। उनका कहने का तात्पर्य है तुमको मोक्ष पुरुषार्थ के लिए स्वयं अपनी
अवधारणा को बदलना होगा। तुम्हे मुक्ति को प्राप्त करने के लिए स्वयं उस
मार्ग पर चलना होगा। तभी उस मुक्ति का लाभ आपको मिल पाएगा ।कर्मबंधन से
मुक्ति के लिए हमें अपने परिणामों को बदलना होगा। हमारे यहां देव शास्त्र
गुरु को निमित्त कहा गया है। उस निमित्त को देखकर के उस निमित्त को समझ
करके उपादान को जागृत करना है। कर्म वंधन से मुक्त हो सकता है ।समो शरण में
दिव्य ध्वनि दिन में चार बार खिरती है।
गुरु महाराज कहते हैं दिव्य ध्वनि
तो आज भी खिर रही है उस दिव्या ध्वनि की वर्गणाये आज भी हमारे पास आ रही
हैं। जो वर्गणायें हैं वह यहां तक आज भी आ रही है लेकिन उन दिव्य ध्वनि की
वर्गणाओं का लाभ हम आज भी ले नहीं पाए। क्यों नहीं ले पाए हम उपयोग अन्य
जगह लगा रहे हैं ।उपयोग को वहां लगा नहीं पा रहे हैं ।गुरु महाराज कहते हैं
उन गुण स्थानों पर चल नहीं सकते पर उन गुण स्थान को छू तो सकते हैं।
परिभाषाओं के माध्यम से उन परिणामों को वहां लेकर तो जाओ अगर यह प्रयोग
नहीं करते तो यह तुम्हारा प्रमाद कहलाएगा। तुम्हारी भूल कहलाएगी हम भले उन
गुण स्थान तक नहीं पहुंच पा रहे है पर ध्यान प्रयोग के माध्यम से उस
गुणस्थान को छूने का पुरुषार्थ करना चाहिए ।गुण स्थान तक पहुंचाने का
पुरुषार्थ करना चाहिए। भले अनुभूति ना हो हमें लेकिन परिणामों के माध्यम से
सामने तो आना चाहिए। लक्ष्य क्या है बंदे तद गुण लब्धे। हम वंदन क्यों कर
रहे हैं ।मोक्ष मार्ग की जितनी क्रियाएं होती हैं श्रावक की हो या श्रमण की
हो कोई फर्क नहीं पड़ता।
आप श्रावक हो या श्रमण हो दोनों की क्रिया का जो
लक्ष्य हुआ करता है वह एक हुआ करता है ।कर्म क्षय सम्यक दृष्टि श्रावक भी
जो किया करता है कोई बिना लक्ष्य यात्रा करता है उसे यात्रा कहेंगे या
भटकाव कहेंगे बोलो भटकाव कहोगे। पर यात्रा तो लक्ष्य को लेकर चलती है
।सम्यक दृष्टि चाहे चतुर्थ गुणस्थान का हो या कहीं का हो वह लक्ष्य तो आत्म
उपलब्धि हुआ करती है ।उस लक्ष्य के बिना उस मंजिल को प्राप्त कर ही नहीं
सकता। गुरुदेव हमेशा हम लोगों को यह उपदेश देते थे बीनावाराह की बात है सभी
बैठे हुए थे मैंने पूछ लिया गुरुदेव मोक्ष मार्ग के लिए कोई सरल साधना बता
दें ,अध्यात्म को जानता नहीं ,सिद्धांत का ज्ञान नहीं ,कम पढ़ा लिखा हूं।
यहां आप ले आए आगे मार्ग अवरूद्ध न हो आगे में बढ़ता जाऊं कोई सरल उपाय बता
दें ।गुरुदेव तो गुरुदेव है वह कभी निराश नहीं करते उन्होंने बोला बहुत
अच्छा प्रश्न किया तुमने सुनो उत्तर भी अच्छा देता हूं मोक्ष मार्ग में आगे
कैसे बढ़े ।
मैं कर्म के आश्रव वंध से कैसे छूटे इसके लिए कुछ नहीं करना
है। देखो बुरे परिणामों के लिए किसी भी प्रकार का पुरुषार्थ नहीं करना
पड़ता है ।यह पूर्व कर्म का एक छाया जैसी छाप पूर्व संस्कार के लिए आपको
किसी प्रकार का पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता। विचार अर्हत यंत्र की तरह आते
रहते हैं चलते रहते हैं अच्छे विचारों के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है
।परिणाम को परिवर्तित करने का नाम ही मोक्ष मार्ग है। अच्छे विचारों को
पढ़ना है यही स्वाध्याय है अपने विचारों को परिवर्तित करना है यही त्याग है
यही स्वाध्याय है ।योगी योग लगाते उनका यही लक्ष्य है ।स्वयं के परिणाम का
चौकीदार स्वयं बनना है ।कुछ ना कुछ परिवर्तन अपने अंदर आना चाहिए।
प्रतिकूलताओं में भी परिणामों की परीक्षा होती है अनुकूलता में नहीं।
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