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बांदकपुर पारसधाम में मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी की सिंह गर्जना.. बांसा में मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज के मंगल प्रवचन.. इधर कुंडलपुर में मुनि श्री निरीहसागर जी ने आचार्य श्री से जुड़े कुछ प्रसंग सुनाएं..

 कोई भी कार्य करते समय अच्छा है या बुरा उसका निर्णय पहले करना चाहिए - निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी 

 दमोह। जिले के प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र बांदकपुर में निर्मित होने वाले पारस धाम में विराजमान जगत पूज्य तीर्थ निर्माता पंगा मुनि श्री 108 सुधा सागर जी महाराज ने कहा कि कोई भी कार्य करते समय यह कार्य अच्छा है या बुरा इसका निर्णय सबसे पहले करना चाहिए  और उसे उसे निर्णय का का सबसे बड़ा मूल सूत्र है जो कार्य हम कर रहे हैं इसका कृत कालीन भाव क्या है कोई कार्य ऐसे हैं जो करते समय अच्छे लगते हैं लेकिन उनका फल बहुत बुरा होता है  कुछ कार्य ऐसे हैं जो करते समय अच्छी नहीं लगती लेकिन उनका फल बहुत अच्छा होता है..

तो हम जिंदगी का पहले मोटिवेशन ले की वर्तमान में कार्य करते समय कैसा लग रहा है इससे हम अच्छी बुरी का निर्णय न करें कई लोग सोचते हैं कि जो कार्य हमें वर्तमान में करने में अच्छा लग रहा है तो भविष्य का अच्छा होगा यह सबसे बड़ी भूल तुम्हारे जीवन में दुख का कारण बन रही है इसी कारण से तुम्हारा भविष्य खतरे में है वर्तमान में जो दुख है भी कोई ज्यादा दुख नहीं है वर्तमान में व्यक्ति ज्यादा दुखी नहीं है सबसे बड़ा दुखी है व्यक्ति भविष्य से कल क्या होगा हम जो आज हैं कल रह पाएंगे आज जो सुखी है कल प्रातः काल रह पाएंगे क्योंकि तुमने दुनिया को वर्तमान सुखी रहते हुए भविष्य दुखी देखा है...
मुनि श्री ने कहा कि शाम को अयोध्या में खुशियां हैं और सुबह सारी अयोध्या  वीरान हो गई शाम को राजा राम राजा बन रहे हैं सुबह वनवासी बन गए जब इतने बड़े पुण्य आत्मा का वर्तमान के सुख का बीज कष्ट का वृक्ष बन गया किसी को राजगद्दी की घोषणा होना चरम पुण्य का उदय आया वही दुख का कारण बन गया पुण्य का बीज संकट का कारण बना राजा दशरथ को कैकई क सबसे ज्यादा प्रिया होना पुण्य का उदय है..
इस शुभ घोषणा ने रानी को खूब भवन में भेज दिया और बनवासी राम बन गए वर्तमान में अच्छा व्यक्ति है अच्छा कार्य कर रहा है तो यह मत समझना कि तुम्हारा भविष्य भी अच्छा होगा वर्तमान के कृतिका कितना भी सुख का कारण हो उसे पर भविष्य के के सुख का महल बनाने की कल्पना नहीं की जा सकती सुख के समय में दुख में कैसे जीना यह सुनने का साहस श्री राम में था..
 धर्म करते समय भविष्य में संकट आएगा अच्छे कार्य करते समय बुरे समय का उपदेश कोई नहीं सुनना चाहता संसार के लोग संसार को बढ़ाने के लिए धर्म करते हैं संसार के सुख बढ़ाने के लिए धर्म करते हैं इसलिए वह धर्म करते हुए भी धर्मात्मा नहीं है आज वर्तमान में धर्म बहुत हो रहा है मंदिरों में लाइन लगी है सब मंदिर जा रहे हैं हर व्यक्ति संसार बढ़ाने के लिए धर्म कर रहा है भोग विलास ता पाने के लिए धर्म कर रहा है..
पारस धाम बांदकपुर मे विराजमान मुनि श्री के आहार प्रदीप डबुल्या के चौके में हुये  मुनि श्री के सानिध्य में चल रहे सहस्त्रनाम विधान  प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया अशोक नगर के निर्देशन में हो रहा है सो धर्मेंद्र सुनील डबुल्या कुबेर प्रदीप डबुल्या सहित समाज के सभी लोग बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं आज मुनि श्री को बाहर से पधारे हुए भक्तों ने श्रीफल अर्पण किया
जल बचाओ अभियान संबंधी चर्चा हुई नुकसान से भी हम सीखें जीवन को मंदिर बनाओ- मुनि श्री प्रमाण सागर जी
दमोह।
बांसा में धर्म सभा का आयोजन हुआ चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन, शास्त्र अर्पण, किया गया कमेटी ने सिद्ध चक्र विधान हेतु श्रीफल अर्पण करके मुनि संघ से निवेदन किया दमोह कलेक्टर श्री सुधीर कोचर ने मुनि संघ के दर्शन किए और जल बचाओ अभियान संबंधी चर्चा हुई इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने कहा कि हम सभी को बहुत सारे ऐसे अवसर मिलते हैं लेकिन हम खो देते हैं, हम जो चाहे ऐसे अवसर कब मिलते हैं, हमारे लिए हर पल नया अवसर मिलता है, जीवन में ऊंचा उठाने का, मेरा जीवन मेरे लिए एक अच्छा  अवसर है, मनुष्य जीवन एक अच्छा अवसर है, जो मिला है उसमें अवसर ढूंढने का प्रयास करें, सज्जन बनकर जीने का अवसर आपके पास है, साधु संत त्यागी सेवा का अवसर मिल रहा है ,यह कम नहीं है, हर क्षण एक अवसर बनकर आया है, नुकसान से भी हम सीखें यह सकारात्मक सोच है, हम सब खुद की वजह से दुखी हैं, दृष्टि विकसित कर लो तो दुख में भी सुख दिखेगा ..
यह अवसर मिल रहा है की संत समागम मिला है, यह जो सत्संग मिला है लाभ लेना है, आप व्यसनों ,बुराइयों को अलविदा करें ,सही अवसर पर जो बीज बोता है वह सही फल पाता है, यह स्टेशन ऐसा है जहां सभी गाड़ियां रूकती हैं, श्रद्धा और संकल्प का बीजारोपण करने का अवसर है, एक व्यक्ति ने कहा था कि मैंने अपने जीवन का स्वर्णिम अवसर खो दिया है, जागते हुए का एक क्षण भी कीमती है, प्रभु शरण में जीवन धन्य हो जाता है, गुरु चरणों में हमेशा शरणार्थी बनकर आओ, जागृत आत्मा पल में आगे बढ़ जाता है ,ताल ठोककर कार्य करो,जीवन को मंदिर बनाओ,जो परमार्थ में लगा दोगे अमर बन जाएगा,अच्छे काम को तत्काल कर डालिए, अवसर मिला है लोगों की सेवा करने का प्रातः काल की बेला में मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज ने भावना योग के माध्यम से बताया कि आज के भागम भाग जीवन को व्यवस्थित करने के लिए भावना योग अति आवश्यक है।भावना योग तन को स्वस्थ, मन को मस्त व आत्मा को पवित्र बनाने का अभिनव प्रयोग है हम जैसी भावना भाते हैं, वैसा होता है। आज व्यक्ति मानसिक तनाव और चिंताओं से ग्रसित है। टेंशन के कारण अनेक रोग जैसे डायबिटीज, हृदय रोग, बीपी को आमंत्रित कर केवल मन से ही नहीं तन से भी अस्वस्थ बना लेते हैं। इस तनाव से उबरने के लिए सकारात्मक भावना से जुड़ने के लिए योग एक महा औषधि है।यह मन को सहज शांति देता है, वहीं यह प्राचीन वैज्ञानिक साधना है।योग करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त प्रातः कालीन 4 से 5 बजे का समय सर्वोत्तम होता है। 
योग हमारी धारणा बुद्धि का विकास करता है और हमारी संकल्प शक्ति को दृढ़ बनाता है जब कभी भी लंबा आसन लगाओ और शरीर में दर्द हो तो अपने मन से शरीर को कमान्ड दो, देखना कोई दर्द महसूस नहीं होगा। तन की बीमारी को कभी मन पर हावी मत होने देना। मैं स्वस्थ हूं, मस्त हूं, यह कमांड अपने मन को दें फिर देखें, आपके अंदर बदलाव आएगा। दवा भी तभी काम करती है जब आपका मन साथ होता हैं। जब तकलीफ हो तो भी यदि आपने तन की तकलीफ को महसूस नहीं किया तो शरीर में स्फूर्ति बनी रहेगी। मन, वचन, तन और आत्मा की शक्ति हम लोगों के पास रोज आती हैं। जिसके पास जितना अधिक बल होता हैं वह उतने अच्छे तरीके से अपनी शारीरिक क्रियाओं को कर लेता है। वचनों की शक्ति के बारे में कहा कि जो जितना अच्छा बोलता है वह स्वयं के साथ ही सामने वाले को भी प्रभावित कर लेता है। मन की शक्ति ऐसी है कि यदि मन को विषयों में लगा दिया जाए तो वही मन बंधन का कारण हो जाता है और यदि मन को विषयातीत कर दिया जाए तो वह मुक्ति का कारण भी बन जाता है। वचनों से भी आपको ताकत मिलती है  और अपने मन को कमांड देना आपका शरीर रीचार्ज हो जाएगा। 
ध्यान क्या है? मन का केन्द्रीयकरण, थोडी़ देर के लिये अपने मन को एकाग्र करो तो वह शक्ति एक जगह केन्द्रित हो जाती है और वही शक्ति एक दिन आत्मा से परमात्मा बन जाती है। वर्तमान में भावना योग को लॉ ऑफ अट्रेक्शन के रूप में जाना जाता है। तन को स्वस्थ, मन को मस्त और आत्मा को पवित्र बनाने का अभिनव प्रयोग है, हम जैसी भावना भाते हैं वैसा होता है , योग को वर्तमान में लॉ ऑफ अट्रेक्शन के रूप में जाना जाता है. आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार, हम जैसा सोचते हैं, वैसे संस्कार हमारे अवचेतन मन पर पड़ते हैं. वे ही प्रकट होकर हमारे भावी जीवन को नियंत्रित और निर्धारित करते हैं इसे सकारात्मक सोच को विकसित करने का मौका मिला है। मुनिश्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि सप्त ऋषि हो गए हैं, इन क्षणों को हृदय में विराजमान करें,दुर्लभ वस्तुओं का लाभ मिलना कठिन होता है, जो गुरु सेवा करता है वह गुरु पद प्राप्त कर लेता है,अपनी आत्मा में लीन होना सारभूत है। कमेटी ने निवेदन किया कि 14 मई को मुनि श्री विमल सागर जी, मुनिश्री अनंत सागर जी, मुनि श्री धर्म सागर जी का 26 वां मुनि दीक्षा दिवस बांसा में मनाया जाए।
कुंडलपुर में मुनि श्री निरीहसागर जी ने सुनाएं कुछ प्रसंग.. सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र, जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से मुनिश्री निरीह सागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कल शाम को आचार्य भक्ति के बाद आचार्य श्री ने मुझे बुलाया एक ब्रह्मचारी के माध्यम से और कहा कल आपको प्रवचन करना है हमने कहा हमसे बड़े-बड़े महाराज जी हैं उन्होंने कहा सब कर चुके हैं आपको करना है ।कुछ प्रसंग ऐसे होते हैं जो सामान्य लोगों ने कभी नहीं सुने लेकिन जो ऊपर मंच पर बैठे हुए हैं उनके सुने हुए हैं वही बात यहां से सुनेंगे तो उनको कैसा लगेगा। 

ठीक है सन 1983 की बात है आचार्य श्री का चातुर्मास ईसरी शिखरजी की तलहटी में हो रहा था ।वहां पर उन्होंने जो प्रवचन में कहा हमने किसी साधक के मुंह से ही प्रवचन में सुना था वह आपके सामने रख रहा हूं। उन्होंने प्रवचन में कहा कि छोटा बच्चा जो होता है उसकी मां दूध पिलाती वह मचलता बहुत है कटोरी में दूध रखा है चम्मच है मां ने गोदी में लिटाया वह हाथ पैर हिला रहा है मुंह भी इधर-उधर कर रहा है दूध पीना नहीं चाहता लेकिन मां समझदार है बच्चा भूखा है उसको दूध पिलाना है जबर दस्ती पिलाना है यदि नहीं पिलाया तो काम नहीं करने देगा बीच में रोएगा। दूध पिलाती है और उसके हाथ पैर छोटे-छोटे होते चलाता रहता है पूरे समय गर्दन भी इधर-उधर होती है तो मां युक्ति से उसके हाथ पैर को अपने पैरों से दवा लेती है और मुंह को पकड़ लेती नाक दबा देती उसके मुंह में चम्मच से दूध भर देती है नाक तब तक दबाए रहती जब तक वह गटक नहीं लेता ।
ऐसे जबरदस्ती करके दूध पिलाती जाती है दो-तीन कटोरी दूध वह पी लेता है ।शरारती बच्चा था जबरदस्ती पिलाया ज्यादा ही शरारती था तब बाद में दही बनाकर निकाल देता है ।कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जो दही बनाकर निकाल देते ।आचार्य जी ने कहा मां जबरदस्ती दूध पिलाती है कि वह काम करने नहीं देगा बाद में रोएगा इस तरह मैं भी आपको प्रवचन जबरदस्ती पिला रहा हूं आप पीना नहीं चाहते आपको पिला रहा हूं बाद में आप कहेंगे अपनी समस्या रखेंगे इसलिए पहले ही सुना रहा हूं। 
मैंने आचार्य श्री के मुख से साक्षात तो नहीं सुना किसी साधु के मुख से सुना था जितना ग्रहण कर पाए आपके सामने रख दिया ।ऐसा ही एक प्रसंग 2011 का है उसमें मुनि प्रसाद सागर जी का ज्यादा है आप उन्हें जानते हैं सब कुछ जल्दी-जल्दी कार्य होना चाहिए धीरे कोई काम नहीं होना चाहिए वैसे ही कुछ हुआ। आपको नहीं पता होगा प्रसंग वहां पर हम लोग विहार कर रहे थे दक्षिण यात्रा में गए थे ब्रह्मचारी अवस्था में थे। आचार्य श्री राजनांदगांव में थे । हम लोगों की बस दुर्ग से राजनांदगांव पहुंची। वहां 36 ब्रह्मचारी हम लोग पहुंचे आचार्य श्री छत्तीसगढ़ में विराज मान थे 36 मूलगुण के धारी आचार्य श्री के पास ।उनमें से 18 की मुनि दीक्षा हो चुकी है कुछ क्षुल्लक बन चुके हैं कुछ ब्रह्मचारी हैं । श्रवणवेलगोल पहुंचे हम लोगों ने भट्टारक जी से अनुमति चाही रात के समय वहां 7--8 बजे अनुमति नहीं थी उनके पास पहुंचे वहां दो आर्यिका माता बैठी थी कुछ तत्व चर्चा चल रही थी हम लोग जाकर बैठ गए।
 उनकी चर्चा समाप्त हुई आर्यिका माता उठकर चली गई हम लोगों ने अपनी चर्चा की अनुमति उनसे ली 1 घंटे हमारी बात हुई। हम लोग दर्शन करने के लिए उन आर्यिका माता के पास जहां रुकी थी दर्शन करने सभी जगह जाते थे वहां पूछते पूछते पहुंच गए हम लोगों ने आर्यिका माता के दर्शन किए उन्होंने गवाशन मुद्रा में नमोस्तु किया। हम लोग 36 ब्रह्मचारी थे आसपास कोई मुनि नहीं नमोस्तु किसे किया। उन्होंने पूछा आचार्य श्री का स्वास्थ्य कैसा है ।हम लोग सोचने लगे इन्हें कैसे मालूम हुआ हम आचार्य संघ के हैं उन्होंने कहा ऐसे युवा हीरे उन्हीं के संघ  में हो सकते हैं ।आचार्य श्री का प्रभाव भी ऐसा था। अब 2018 का प्रसंग आता है डिंडोरी में आचार्य श्री थे महावीर जयंती के दूसरे दिन पपोरा जी के लिए विहार हुआ ।महावीर जयंती के समय और बाद में कितनी गर्मी होती है हमने विहार में कुछ व्यवस्थाएं की महाराज जी के आशीर्वाद से की । वैसे हमें कुछ आता नहीं है प्रवचन नहीं आता हम कुछ प्रसंग सुना रहे हैं पुराने महाराज थे ब्रह्मचारी थे जबलपुर का विहार हो रहा था दुर्लभ सागर महाराज ने कहा आपको यह काम करना है पहले से वह स्थान देखना है जहां आचार्य श्री को रोकना है ठंड है तो ठंड के अनुकूल गर्मी है तो गर्मी के हिसाब से व्यवस्था करनी है। 
हमने वैयावृती कैसी करनी है तेल घी तो सभी करते हैं हमने कहा जो वैयावृती कोई नहीं करता वह हम करेंगे और हम जहां रुकना है आधे पौन घंटे पहले पहुंच जाते थे जहां आचार्य श्री को रोकना है वहां व्यवस्था ठंड गर्मी के हिसाब से देख लेते थे। सभी महाराज के पाटे लगवा देते थे ।विद्यालय में ही रुकना होता था वहां आहार होते थे बहुत बड़ा प्रांगण था किनारे किनारे कक्ष बने हुए थे। एक चौके वाले भाई आए और कहा हमें आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन करना है ।हमने उन्हें कहा इस चबूतरे पर जल कोपर रख दो। सभी चौके वाले किनारे बैठ गए। आचार्य श्री आ रहे थे मुनि लोग आ रहे थे संकेत कर दिया यहां आना है ।कोई पैर छूना नहीं मैंने कह दिया ।आचार्य श्री ने दोनों पैर कोपर में डाल दिए आचार्य श्री के आदेश से सभी ने उनके पैर धुलाये उन लोगों का पुण्य था  उन्हें पाद प्रक्षालन का अवसर मिल गया।

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