तीन निर्यापक मुनि संघ के सानिध्य में श्रमण संस्कृति शिक्षण शिविर का शुभारंभ, संत भवन शिलान्यास.. आरएसएस की पत्रिका में आचार्य पद पदारोहण को व्यापक कवरेज.. कुंडलपुर में मुनि श्री दुर्लभ सागर जी के प्रवचन
दमोह।
निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर
जी निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी एवं मुनि संघ के मंगल सानिध्य में 22
से 28 तक आयोजित होने वाले श्रमण संस्कृति संस्कार शिविर का शुभारंभ
ध्वजारोहण के साथ हुआ। ध्वजारोहण का सौभाग्य अरविंद इटोरिया परिवार को
प्राप्त हुआ।
शिविर के आयोजन हेतु मुख्य कलश की
स्थापना करने का सौभाग्य दिल्ली के वीरेंद्र जैन मोतीलाल जैन परिवार को
प्राप्त हुआ। दमोह के इतिहास में प्रथम बार शिक्षण शिविर का आयोजन मुनि संघ
के मंगल सानिध्य में बहुत उत्साह एवं उमंग के साथ प्रारंभ हुआ जिसमें बड़ी
संख्या में पुरुष महिलाएं एवं बच्चे सम्मिलित हुए। इसमें प्रातः काल 5 से
6 बजे आचार्य भक्ति हुई प्रातः 6 से 7 शिविर की कक्षाएं प्रारंभ हुई।
जिसमें निर्यापक मुनि श्री वीर सागर महाराज जी के द्वारा जीवन जीने की कला
एवं गंभीर सागर जी महाराज के द्वारा छहडाला की क्लास ली गई।
प्रातः 7 से 8 बजे निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज के द्वारा
रतनकरंड श्रावकाचार मुनि श्री पदम सागर जी के द्वारा इष्टउपदेश मुनि श्री
शीतल सागर जी महाराज के द्वारा तत्वार्थ सूत्र की क्लास ली गई। जिसे बड़ी
एलइडी स्क्रीन पर बहुत प्रभावशाली ढंग से चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित
भी किया गया। उसके पश्चात 8 बजे से 9:30 बजे तक निर्यापक मुनि श्री सुधा
सागर जी महाराज के द्वारा भक्तांबर जी पर मंगल प्रवचन हुए। उसके
बाद उनके द्वारा दोपहर में 2:30 बजे से 4:30 तक गोमटसार की कक्षा ली गई।
शाम 5 बजे से आचार्य भक्ति के पश्चात साइ 6 बजे से जिज्ञासा समाधान के
पश्चात छुल्लक जी गंभीर सागर के मंगल प्रवचन हुए। प्रवचन के पश्चात 8 बजे
से बच्चों की कैरियर काउंसलिंग प्रतियोगिताएं एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम
आयोजित हुए तत्पश्चात रात्रि में 9 से 10 बजे छहढाला की क्लास विद्वानों
के द्वारा ली गई।
मनुष्य अनादि काल से सुख की खोज में भटक रहा है..मुनि श्री सुधा सागर जी.. शिविर
के प्रातः काल निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने कहा कि मनुष्य
के जीवन में विषमता बनी रहती है कभी वह दुखी कभी सुखी होता है एक समान उसका
जीवन सुखमय नहीं रह पाता इसी जिज्ञासा के समाधान के लिए भक्तांबर स्रोत है
धर्मगुरु हमें इसका रहस्य बताते हैं मनुष्य अनादि काल से सुख की खोज में
भटक रहा है अंदर सुख भरा पड़ा है उसे इसका ज्ञान नहीं है जिस तरह हिरण के
नाभि में कस्तूरी होता है और हिरण भगता फिरता है हमारी संपत्ति हमारे पास
है किंतु हम उसका उपयोग नहीं कर पाते।
जिस तरह धन
सोना चांदी लॉकर में रखा होता है किंतु बिना बैंक मैनेजर की चाबी के हम उसे
नहीं खोल सकते बैंक के लॉकर में हमारी स्वयं की संपत्ति है किंतु बिना
बैंक मैनेजर की चाबी के वह लाकर नहीं खुलेगा इसी तरह सम्यकदर्शन आत्मा में
है किंतु बिना देशना लब्धि के बिना गुरु रूपी चाबी के वह हमें प्राप्त नहीं
हो सकता जब तक केवली भगवान की चरण रूपी चाबी उसमें नहीं लगेगी मोक्ष महल
का द्वार नहीं खुल पाएगा निमित्त कुछ करता नहीं किंतु बिना निमित्त कुछ
होता नहीं दीप जलता है और बुझा हुआ दीपक कभी जलता नहीं जलते हुए दीपक से
बुझे हुए दीपक को जलाया जा सकता है देव शास्त्र गुरु और भक्तांबर स्रोत
जलते हुए दीपक हैं जो हमारी आत्मा की बुझी हुई शक्ति को जला सकते हैं।
भक्तांबर
हमें जीवन में आने वाले दुखों से बचने के लिए तैयार करता है स्वर्ग और
भोगभूमि आदि में कोई कष्ट नहीं आते किंतु कर्मभूमि में कब कौन सा कष्ट आ
जाए कहां नहीं जा सकता एक क्षण में चक्रवर्ती कोड़ी बन सकता है इंद्रप्रस्थ
के राजा पांडव एक बुराई के कारण सब कुछ हार गए और कंगाल हो गए एक ही दिन
में राजाराम वनवास चले गए महान पुण्य आत्माएं भी कर्म के प्रभाव से संकट
में आ जाते है किंतु वे अपने पुरुषार्थ से उनसे उबर जाते हैं।
यहां
जीवन के साथ मरने की तैयारी होनी चाहिए रोते हुए हंसने की तैयारी होनी
चाहिए हारते हुए जीतने की तैयारी होनी चाहिए यह संसार राजनीति है यहां बाप
भी सगा नहीं होता यदि यहां नीति होती तो मंदिर गुरु भगवान और भक्तांबर की
जरूरत नहीं होती जो तैयारी करेगा उसे भक्तांबर सिद्ध हो जाएगा सुख नहीं दुख
में क्या तैयारी है भक्तांबर सुख नहीं दुख की तैयारी है हमें भक्तांबर
रूपी पैराशूट पहन लेना चाहिए ताकि दुख के समय गर्त में जाने से हम बच सके
जीवन में जब संकट आए तब भक्तांबर के माध्यम से भक्त भगवान की भक्ति करके
उन्हें अपने वश में कर लेता है भगवान की भक्ति का दुनिया में भक्तांबर से
बड़ा कोई स्रोत नहीं है भक्ति की भाषा श्रद्धा और समर्पण की होती है भक्ति
में भगवान भी भक्ति के अनुरूप हो जाते हैं..
आज आहारचर्या के पुण्यार्जक परिवार.. दमोह।
निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य आशीष
उस्ताद के परिवार को प्राप्त हुआ। निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर के
आहार राजेश हिनौती परिवार को प्राप्त हुआ मुनि श्री प्रयोग सागर जी नेमचंद
सुलभ बजाज परिवार मुनि श्री सुब्रत सागर डॉ प्रदीप जैन निर्यापक मुनि
श्री वीर सागर जी महाराज को आहार देने का सौभाग्य कौशल किराना परिवार मुनि
श्री पदम सागर जी महाराज के आहार का सौभाग्य आनंद लैब परिवार मुनि श्री
शीतल सागर जी महाराज को आहार देने का बाबू खजरी परिवार को गंभीर सागर जी
महाराज के आहार दीपक स्टेशनरी परिवार को प्राप्त हुआ।
आरएसएस की पत्रिका में आचार्य पद पदारोहण को व्यापक कवरेज.. दमोह।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी मासिक पत्रिका शास्वत हिन्दू गर्जना में
पूज्यवर आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य समय सागर जी महाराज के
आचार्य पदारोहन कार्यक्रम को विस्तृत रूप से समाहित किया गया।
जो देश के
विभिन जिलों एवं ग्रामो तक जाएगी। जिसकी एक प्रति आज पूज्य निर्यापक मुनि
सुधासागर जी महाराज को भेंट की गई । इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
कार्यकर्तागण ने गुरुदेव को श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
निर्यापक संघ के सानिध्य में संत भवन शिलान्यास कार्यक्रम
दमोह।
निर्यापक श्रमण द्वय मुनि पुंगव 108 श्री सुधा सागर जी एवं मुनि श्री 108
प्रसाद सागर जी का बुधवार सुबह नन्हे मंदिर से सिविल वार्ड भाईजी मंदिर
आगमन हुआ। गाजे बाजे के साथ जगह-जगह मुनि महाराजों की पाद प्रक्षालन और
जगह-जगह महिला मंडल द्वारा रंगोली सजाकर भव्य अगवानी की गई। पूज्य निर्यापक
श्रमण द्वय के परम सानिध्य में आचार्य विद्यासागर संत भवन भाई जी मंदिर
सिविल वार्ड का भव्य शिलान्यास कार्यक्रम मन्त्रोंचार एवं विधि विधान
द्वारा संपन्न हुआ।
जिसमें कई गणमान्य श्रावक
श्रेष्टीयों द्वारा संत भवन में कमरा निर्माण एवं अन्य बोलियां ली गई। जिन
में प्रमुख रूप से नंदन लाल गंगरा परिवार, अजय होजरी परिवार,संदीप सतीश
अभाना परिवार, संतोष भारती परिवार,अरविंद इटोरिया परिवार, पवन जैन चश्मा
परिवार, डॉ आरके गांगरा परिवार,डॉ अमित कविता जैन o2 हॉस्पिटल परिवार,
श्रीमती शांति जैन विकल्प जैन एडवोकेट परिवार, हेमंत कीर्ति सिंघई परिवार,
राजकुमार जैन परसवाहा परिवार जीनेश सेठ परिवार मुख्य रूप से रहे।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे।
अंदर बैठे परमात्मा का बोध कराने वाले गुरु हैं..मुनि श्री दुर्लभ सागर जी.. सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में महासमाधिधारक संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से पूज्य मुनि श्री दुर्लभ सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा युग बीतते हैं, सृष्टि बदलती है ,कई युग दृष्टा जन्म लेते हैं अनेकों की स्मृतियां शेष रह जाती हैं कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो अपनी करुणामयी महती कार्यों से युग युगान्तर तक याद ही नहीं अपितु आदर्श के रूप में हम जैसे अनेक लोगों का मार्ग जिन्होंने प्रशस्त किया है ।असंख्य जन-मानस को घने तिमिर से निकालकर उज्जवल प्रकाश से प्रकाशित कर दिया ऐसे निरीह, निर्लिप्त, निरपेक्ष, अनियत विहारी स्वावलंबी जीवन जीने वाले युग पुरुष की सर्वोच्च श्रेणी में आते है वे है हमारे गुरुदेव, हमारे भगवन्त विद्यासागर जी महामुनिराज।
जिन्होंने स्वेच्छा से अपने जीवन को पूर्ण वीतरागमय बनाया। जिन्होंने त्याग और तपस्या से कार्य किया स्वंय के रूप को स्वरूप को संयम के सांचे में डाला और अनुशासन को ही अपनी ढाल बनाया ऐसे महान गुरु हमें पंचम काल में दर्शन दे रहे थे। हम सब का कल्याण किया। अगर परमात्मा का परिचय कौन कराता अंदर बैठी आत्मा का परिचय कौन कराता सत्ता के सानिध्य संसर्ग और अंदर की चेतना जागती है उसका नाम ही तो गुरु है। अंदर बैठे परमात्मा का बोध कराने वाले वे गुरु हैं। आपने सुना होगा गुरु साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे आजकल जो भी सिद्ध हुए हैं गुरु चरणों से ही उनके सिद्ध की यात्रा प्रारंभ होती है। एक बात कहूं राग में आकर्षण होता है वह आकर्षण विकर्षण में रूपांतरित होने में देर नहीं लगती। राग में आकर्षण होता है पर वह आकर्षण विकर्षण होने में देर नहीं लगती ।राग केंद्रित होता है सामने वाला जब तक राग करता है वह राग रहता है राग टूटने में देर नहीं लगती स्वयं की भी भावना होती है और टूट जाती है लेकिन समर्पण की प्यास न्यारी है उसमें भी आकर्षण होता है पर विकर्षण के रूप में रूपांतरित नहीं होता है। समर्पण पर केंद्रित होता है मोक्ष मार्गियो के लिए पर केंद्रित सब है जो उन्होंने किया है जो उन्होंने करा है वह करते चले गए।
गुरुदेव चले गए हैं ,पर गुरुदेव हमारे पास हैं ।गुरुदेव की आंखों को लेकर कुछ लिखा था जिनके अंदर आदर भाव झलकता है जिनको देखकर अभिनंदन भाव झलकता हो जिनको देखकर आकिंचन भाव होता हो और अहोभाव होता हो जिन आंखों को देखकर हम झुक जाएं हम समर्पित हो जाएं अपने आप को अर्पित कर दें वह है आदर भाव। जिन आंखों को देखने से हमारा अहमभाव गल जाए उनकी अहमियत से अपने जीवन को समतामय बना लें ये है आदर भाव। जिन आंखों को देखने से हमारे दर्द की भटकन और संसार की अटकन समाप्त हो वह आंख हमारे जीवन को संवारने वाली हो। मुनिश्री ने आंखों पर रचित अपनी रचना सुनाई और आचार्य श्री से संबंधित संस्मरण सुनाया किस तरह है उन्हें मुक्तागिरी में आचार्य श्री का पहला दर्शन प्राप्त हुआ।
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एक रक्तदान मां के नाम.. अटलजी की पुण्यतिथि पर 12 वां रक्तदान
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