दमोह। नगर के श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हें मन्दिर जी मे आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य तीन निर्यापक मुनि संघ विराजमान है जिनके सानिध्य में सुबह से शाम तक विविध धार्मिक आयोजन चल रहे हैं। जिनमे नगर की सक्ल जैन समाज के अलावा अन्य क्षेत्रों से श्रद्धालु जन शामिल होकर धर्म लाभ अर्जित कर रहे हैं।
गुरु के प्रति लघुता रखें निर्यापक श्रमण मुनि श्री समता सागर जी.. कुंडलपुर दमोह। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समता सागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा आचार्यों ने तीर्थंकर भगवंतों की देशना को जो प्रतिपादित किया है जितना भगवान ने जाना उतना भगवान प्रतिपादित नहीं कर पाए जितना भगवान ने प्रतिपादन किया है कथन किया है उतना गणधर उसे ग्रहण नहीं कर पाए गणधरों ने जितना प्रस्तुत किया है उतना आचार्य परंपरा को प्राप्त नहीं हुआ है ।
आचार्य परंपरा को जितना प्राप्त हुआ है उतना प्रवाह रूप में आगे बढ़ते बढ़ते लिपिबद्ध नहीं हो पाया। जितना लिपिबद्ध हुआ है जो भी हमारे को प्राप्त हुआ है देखा जाए तो कम नहीं है। वैसे देखा जाए तो समुद्र में से जल की एक बूंद है। वह भी जल की एक बूंद भी हमारे क्षयोपशम और क्षमता के अनुसार है। हमारे लिए समुद्र की बूंद भी समुद्र के बराबर है ।आचार्य महाराज ने इसलिए लिखा श्रुत में अवगाहन करें कितना भी काल बीत जाए उसका पार नहीं लेकिन सार क्या है श्रुत में अवगाहन करना ही सार नहीं है श्रुत अवगाहन करते-करते स्वयं में संगति हो जाए यह सार है। पानी के अंदर डुबकी लगाते रहे तैरते रहे स्नान करते रहे अच्छी बात है वह भी माध्यम है लेकिन अगर वह स्नान करने वाला डुबकी लगाने वाला प्यासा रहे तो अवगाहन उसका सार्थक नहीं है अवगाहन ज्यादा करें या ना करें एक बूंद भी उसे प्राप्त हो जाए वह अपनी तृषा को बुझा ले इसलिए आचार्य महाराज कहते हैं पंचम काल में रहने वाले हम और आप तो दूरमेती हैं दुर्बुद्धि हैं ।अब क्या करें समय थोड़ा सा है श्रुत का कोई पार नहीं हम दुर्बुद्धि हैं ऐसे समय में करे क्या जिससे जन्म जरा और मरण का नाश हो जाए। इतनी व्याधियां रोग लगे हुए हैं इनका विनाश हो तो अजर अमर पद प्राप्त हो। गुरुवर आचार्य श्री की चरण सन्निधि में नेमावर पहुंचे थे उस समय आचार्य श्री ने अपने संबोधन में एक हाईकू बोला था वह अभी भी याद है जरा ना चाहूं अजर अमर बनू नजर चाहूं मैंने अपने संबोधन में प्रवचन में यह बात रखी कि गुरुवर से कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ती गुरुवर से कुछ आग्रह जरूरत नहीं पड़ती इतना ही हो गुरुवर के चरणों में नजर बनी रहे और गुरुवर की नजर हमारे ऊपर बनी रहे अपनी नजर गुरुवर के चरणों में रहे। विनम्रता का प्रतीक है और जब हम विनम्र होंगे तो ऊपर वाले की नजर बिन मांगे ही पड़ेगी। जेष्ठश्रेष्ठ निर्यापक श्रमण नियम सागर जी का कैशलोंंच हुआ ।ईर्या भक्ति के बाद वैया वृत्ति का भाव हुआ पहुंच गया। गुरुवर की नजर पड़े यह शिष्य का सौभाग्य है गुरुवर की नजर में हम बनेरहे यह सातिशय पुण्य का योग है मांगने की जरूरत नहीं पड़े बिन मांगे मिले यह हमारा सौभाग्य होता है। गुरुवर आचार्य जी ने अपने गुरुवर ज्ञान सागर जी से कुछ नहीं मांगा पर उनको सब कुछ मिल गया ।गुरु नाम गुरु आचार्य ज्ञान सागर महाराज जो उन्हें देना चाहते थे आप मिल गए उससे ज्यादा पाने की जरूरत नहीं यह बहुत बड़ा सौभाग्य है। नेमावर के प्रवचन संग्रह में आचार्य गुरुवर ने यह बात भी कही थी हमारे गुरु ज्ञान सागर जी भले बहुत दूर हैं बाहर से दूर है लेकिन अंदर से दूर नहीं है अंदर से तो हमारे अंदर है बहुत निकट हैं फिर गुरुवर ने यह भी कहा जब एक बार बैठ गए हैं तो निकल कर जा भी नहीं सकते उन्होंने पूरे विश्वास से यह भी कहा था आकर बैठे नहीं मैंने ही उन्हें बिठाला है मुझसे पूछे बिना वह जा भी नहीं सकते हैं। गुरुवर की भक्ति और निष्ठा देखकर के हम सबको लगता है हमारे गुरुवर इतने महान होकर भी अपने गुरु के प्रति कितनी लघुता रखते थे ।तो हमारे जीवन में भी गुरु के प्रति यही लघुता होनी चाहिए हायकू लिखा है गुरु ने गुरु समय दिया लघु बने। लघु बने बिना कोई राघव रघुराई बन ही नहीं सकता।
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