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निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर श्री प्रसाद सागर जी के सानिध्य में.. मुनि श्री पदम सागर का दीक्षा दिवस मनाया गया, अहिंसा अलंकरण सम्मान प्रदान किए गए.. कुंडलपुर में संभव सागर आदि मुनिराजो का दीक्षा दिवस मनाया गया..

दीक्षा दिवस उपकार दिवस है..मुनि सुधा सागर 

दमोह। दमोह के श्री पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर जी मे आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी एवं श्री प्रसाद सागर जी महाराज संघ सहित विराजमान है वही बुधवार को एक और निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज की प्रातः बेला में संघ सहित अगवानी होने जा रही है।
जैन धर्मशाला में मंगलवार सुबह निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर एवं श्री प्रसाद सागर जी के ससंघ के सानिध्य में मुनि श्री पदम सागर जी का 25 व मुनि दीक्षा दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दीक्षा दिवस उपकार दिवस है गुरु के उपकार को कभी नहीं भुलाया जा सकता 


मुनि श्री ने कहा कि आचार्य श्री ने चैतन्य कृतियों की रचना की है चैतन्य कृति को लिखने वाला महान होता है। चैतन्य कृति लिखना बहुत कठिन है चैतन्य कृति पराधीन एवं अचेतन कृति स्वतंत्र है अचेतन कृति लिखने वाला खुश होता है जबकि चेतन कृति वाला जिस पर लिखा गया वह खुश होता है। हम आचार्य श्री की चेतन कृतियां हैं दीक्षा से गुरु नहीं वरन दीक्षा लेने वाला धन्य हो जाता है दीक्षा से आनंद सुख की अनुभूति होती है। गुरु तब धन्य होता है जब उसकी पहचान शिष्य से होती है शिष्य  के गलत कार्य करने से गुरु का नाम बदनाम होता है।
इसके पूर्व मुनि श्री पदम सागर जी ने कहा कि उनके बैराग की एक लंबी कहानी है अनेक उतार चढ़ाव के पश्चात उन्हें परम उपकारी गुरु से दीक्षा लेने का सौभाग्य मिला गुरु के उपकार को जन्म-जन्मतर तक नहीं भूला जा सकता। निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज ने कहा कि गुरु तो हमारे जीवन में चार्जर की तरह होते हैं जो हमारी आत्मा को चार्ज कर देते हैं। गुरु के संसर्ग से आत्मा पवित्र और मृदु हो जाती है  और वह मोक्ष मार्ग के लिए अग्रसर हो जाती है। आज मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज का पाद प्रक्षालन का सौभाग्य पंडित सुरेश शास्त्री परिवार को प्राप्त हुआ।
आज की आहारचर्या के सौभाग्यशाली परिवार..

परिवार मंगलवार को निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी का पड़गाहन करके अपने चौके में आहार कराने का सौभाग्य मुनि श्री  निर्मोह सागर जी के गृहस्थ जीवन के परिवार को प्राप्त हुआ।  निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर के आहार संतोष गंगरा पदम जुझार परिवार के यहा हुए।। मुनि श्री पदम सागर जी के आहार वीरेश सेठ कमलेश सेठ परिवार, मुनि श्री शीतल सागर जी के आहार राजेश जैन परिवार, छुललक गंभीर सागर जी के आहार का सौभाग्य महेश बड़कुल परिवार को प्राप्त हुआ।

अहिंसा अलंकरण सम्मान प्रदान किए गए..
दमोह शाकाहार उपासना परिसंघ के द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाने वाला अहिंसा महावीर चक्र एवं धर्म महावीर चक्र पुरस्कार अहिंसा अलंकरण समारोह में प्रदान किया गया।  

निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में जिज्ञासा समाधान अवसर पर दिये गए। संयोजक सुनील वेजीटेरियन ने बताया कि संस्था पिछले 30 वर्षों से निरंतर  पुरस्कार प्रदान कर रही है। अहिंसा एवं शाकाहार के क्षेत्र में तथा धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित करते रहे हैं। 

इसमें इस वर्ष तेंदूखेड़ा गौशाला अध्यक्ष संजय पारस मणि को अहिंसा महावीर चक्र एवं दमोह के दानवीर संजय जैन अरिहंत को धर्म महावीर चक्र पुरस्कारों से अलंकृत किया गया। कार्यक्रम में दिगंबर जैन पंचायत के अध्यक्ष सुधीर सिंघई कुंडलपुर क्षेत्र कॉमेटी के पूर्व अध्यक्ष संतोष सिंघई वीरेश सेठ नवीन निराला सुनील वेजीटेरियन संजीव शाकाहारी श्रेयांश सराफ आशीष जैन अध्यक्ष उपासना परिसंघ दमोह ने दोनों पुरस्कार प्राप्त करता को शाल श्रीफल और सम्मान पत्र भेंटकर सम्मानित किया। 
इस मौके पर निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने अपने दोनों हाथों से आशीर्वाद देते हुए कहा कि शाकाहार उपासना परिसंघ बहुत अच्छा कार्य कर रही है अच्छा कार्य करने वालों को प्रोत्साहन देने वाली बहुत कम संस्थाएं होती हैं संस्था का यह कार्य बहुत सराहनी नहीं है।

संभव सागर आदि मुनिराजो का दीक्षा दिवस मनाया
 सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र ,जैन तीर्थ कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रभावक शिष्य पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी के मंगल आशीर्वाद से निर्यापक मुनि श्री संभव सागर जी ने मुनि दीक्षा दिवस के अवसर पर प्रवचन देते हुए कहा देखो आज का दिवस ऐसा है सूरज की तपन कुछ कम है। उस दिन 22 अप्रैल 1999 वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन सूर्य सुबह से ही इतना तप रहा था कि शायद वह सबसे ज्यादा लालायित हो गुरुदेव आचार्य भगवान पहली बार दीक्षा नहीं दे रहे थे सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र में 23 मुनि दीक्षा प्रदान की गई गुरुदेव के करकमलों से। सर्वप्रथम दीक्षा द्रौणगिर  सिद्ध क्षेत्र में पहली दीक्षा जेष्ठ श्रेष्ठ वर्तमान में आचार्य श्री समय सागर जी महाराज को दीक्षा प्रदान की गई थी। मुनि श्री योग सागर जी महाराज परसों सुना रहे थे की दीक्षा कैसे हुई आचार्य श्री स्वयं बाहर आए बोला यह तखत कहां लगाना है हम लोगों ने तखत पाटा लगाया। दर्शक भी ऐसा नहीं कोई सुनने वाला नहीं। उस समय की सोचें जब आचार्य महाराज ने समय सागर जी महाराज को दीक्षा प्रदान की ।

योगसागर महाराज बता रहे थे हम लोगों ने खड़े-खड़े दीक्षा देखी। पाटा लगाया पाटा पर चौकी लगाई। आचार्य भगवन बैठ गए समय सागर जी को बिठाया और दीक्षा के संस्कार शुरू हो गए। थोड़ी देर में दीक्षा पूर्ण हो गई। वैसा ही चतुर्थ कालीन वह दृश्य था। वह दीक्षा इतने विशाल संघ में एक नींव के पत्थर का कार्य किया। उस नींव के पत्थर पर इस विशाल संघ की आधारशिला रखी गई। यूं तो गुरुदेव ने चार क्षुल्लक दीक्षा दी थी पर जब तक कोई आचार्य मुनि दीक्षा नहीं देता तब तक उसका वह पद सुशोभित नहीं होता ।योग सागर जी बोलते हम शहर वासी हैं उनकी दीक्षा सागर में मोराजी में हुई। दो कदम चल गुरुदेव ने मुनि श्री योग सागर जी एवं नियम सागर जी को मुनि दीक्षा प्रदान की ।गुरुदेव ने और कदम बढ़ाए 2,5,8 दीक्षा प्रदान की ।इकाई का अंक था। 
सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र में पहली बार दहाई के अंक में दीक्षा प्रदान की गई। 10 दीक्षा प्रदान की गई शरद पूर्णिमा के दिन। कुछ समय गुजरा नहीं 9 मुनिराज की दीक्षा मुक्तागिरी सिद्ध क्षेत्र में हुई ।वहां गुरुदेव ने अचानक शाम को बताया दीक्षा के विषय में। नेमावर  सिद्ध क्षेत्र में वैशाख शुक्ल सप्तमी को 47 डिग्री तापमान पर 23 मुनि दीक्षा प्रदान की गई। दयोदय जबलपुर में 25 दीक्षाएं दी । गुरुदेव ने जिनधर्म  की प्रभावना करते हुए रामटेक में 24 दीक्षाएं दी। गुरुदेव ने एक-एक दो-दो घंटे में दीक्षा संपन्न की है। शीतल धाम विदिशा में शीतल सागर जी आदि मुनिराज को4 दीक्षा दी ।बीनाबारहा में तीन दीक्षाएं दी ।ललितपुर में दीक्षा दी। अंतिम दीक्षा उत्कृष्ट दीक्षा दी। अच्छा बेस्ट मैन वह होता जो हर बाल पर रन बनाए। गुरुदेव ने लिखा है बड़े बाबा ने बड़ी कृपा की दे मुझे आशीष ।गुरुदेव ने कुंडलपुर में 84 आर्यिका दीक्षा प्रदान की है ।एक भी मुनि दीक्षा नहीं दी है ।

आचार्य पदारोहण समारोह यहां पर हुआ। हम लोग चंद्रगिरी से चलकर आए। मुनि दीक्षा से शुरुआत हो बड़े बाबा के पादमूल में। आर्यिका दीक्षा भी यहां बड़े बाबा के पादमूल में हो ऐसी भावना है ।ऐसी संयोजना हो बड़े बाबा तो बड़े बाबा हैं उनके बारे में क्या कहा जाए ।यहां कोई भी कार्य असंभव नहीं है करीब से देखा है पूरी जैन समाज सशंकित थी,  संघ के सदस्य भी सशंकित थे ।यह कार्य कैसे होगा गुरुदेव ने ठान लिया और पुरातत्व ,शासन, प्रशासन सबके ऊपर हावी था। आत्म अनुशासन और गुरुदेव ने आत्मानुशासन से वह कार्य कर दिखाया दुनिया देखती रह गई। पुरातत्व शासन प्रशासन न्यायपालिका  कह रही थी यह कार्य हो नहीं सकता ।
उसी सर्वोच्च न्यायपालिका ने अपनी मोहर लगा दी कि यह कार्य ठीक हुआ ।यह कार्य गुरुदेव की दूरगामी सोच है ।2006 का वह वृतांत है ।सब लोगों के सामने प्रश्न चिन्ह था कार्य कैसे होगा जिन शासन की ध्वजा को आगे ले गए गुरुदेव ।इस प्रभावना को बढ़ाना है गुरुदेव ऊपर विराजमान है स्वर्ग से देख रहे होंगे। संघ की इस धरोहर को अपनी आखिरी पीढ़ी को सौंपा था वह संघ को गति दे रहे । संघ फल फूल रहा है आगे के कार्य करने का शंखनाद करना है ।हम सब मिलजुल कर अपने नूतन आचार्य समय सागर जी से निवेदन कर रहे हैं अपनी बात पुरजोर तरीके से रखेंगे।

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