मुनि श्री सुधासागर महाराज जी की बांदकपुर में अगवानी
दमोह। कुंडलपुर मैं आयोजित भव्य आचार्य पदरोहण समारोह के बाद मुनि संघो का विहार शुरू हो चुका है। महा समाधि धारक आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनि राज के शिष्य आचार्य श्री समयसागर महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य निर्यापक श्रमण श्री सुधा सागर जी महाराज का सोमवार को धर्म नगरी बांदकपुर में मंगल प्रवेश हुआ
निर्यापक मुनि श्री 108 सुधासागर महाराज जी की सोमवार को प्रातः बेला में
बांदकपुर में ससंघ मंगल प्रवेश के अवसर पर सकल जैन समाज द्वारा समाज
अध्यक्ष एवं सरपंच सुनील डाबोलिया के नेतृत्व में भव्य मंगल अगवानी की गई। इस
अवसर पर जगह-जगह रंगोली सजाकर आरती उतार कर धूमधाम के साथ मुनि पुंगव की
अगवानी व दर्शन कर आशीर्वाद पाने भक्तजन आतुर रहे। बांदकपुर से 4 किलोमीटर दूर हिंडोरिया रोड पर स्टेशन चौराहा से जुलूस शुरू हुआ जिसमें दसों घोड़े पर समाज के नव युवक हाथों में धर्म ध्वजा लिए हुए चल रहे थे। विभिन्न गांव से आई हुई भजन कीर्तन मंडली व बैंड पार्टी चल रही थी। उसके बाद बुंदेलखंड का शेर नृत्य करते हुए युवक चल रहे थे।समाज की महिलाएं भी एक ही वेशभूषा में मुनि श्री का स्वागत करती हुई चल रही थी। महाराज श्री ने गांव में प्रवेश किया सबसे पहले भगवती मानव कल्याण संगठन के द्वारा मुनि श्री का पाद प्रछालन आरती उतारी गई। बाजार चौक में व्यापारी संघ के द्वारा मुनि श्री की अगवानी की गई।
बांदकपुर में मुनिश्री सुधासागर जी के प्रवचन लाभ का सौभाग्य भी सभी को प्राप्त हुआ। महाराज श्री को शास्त्र भेंट करने का अवसर ब्रह्मचारी नितिन भैया निपुण जैन व मोना डबुल्या जबलपुर को प्राप्त हुआ। मुनि श्री का प्रथम पाद प्रछालन करने का सौभाग्य मुन्ना डबुल्या सुनील डबुल्या प्रसू प्रिंस डबुल्या परिवार को प्राप्त हुआ। शाम को बांदकपुर समाज के तत्वाधान में मुनि श्री का शंका समाधान का कार्यक्रम भी हुआ
मुनि श्री सुधासागर जी महाराज को नवधाभक्ती पूर्वक पड़गाहन कर निरन्तराय आहार कराने का सौभाग्य ब्रा. नितिन भैया जी परिवार को ही प्राप्त हुआ। श्री मति सूरज जैन, निपुण लीना जैन, ब्रा. नितिन भैया जी, निशांत-गरिमा जैन (USA), नितेश-नविता जैन,
भाषिका, सरण, सृजन, धृति जैन बांदकपुर परिवार को प्राप्त हुआ। मात्र 10
दिनों के अंदर में ये दूसरा मौका है जब पूज्य श्री की महती अनुकम्पा आज पुनः नवधाभक्ती पूर्वक पड़गाहन कर सानंद निरन्तराय आहार
कराने का सौभाग्य परिवार को प्राप्त हुआ।
दमोह। महा समाधि धारक आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनि राज के शिष्य आचार्य श्री समयसागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि श्री अजीत सागर एवं मुनि श्री विनम्र सागर संघ का कुंडलपुर के प्रवेश द्वार दमोह में मंगल प्रवेश हुआ। इस अवसर पर बड़ी संख्या में भव्य जनों ने मुनियों की अगवानी करके उनका मंगल प्रवेश कराया।
दमोह के श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी मे धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री अजीत सागर जी महाराज ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि मनुष्य गति अत्यंत दुर्लभ है इसी गति से हम अपना उद्धार कर सकते हैं उच्च
कुल प्राप्त होने के बाद भी यदि मनुष्य अपने आत्म कल्याण का पुरुषार्थ नहीं
करता तो उसका जीवन व्यर्थ है जिनेंद्र भगवान का सानिध्य प्राप्त करके
मुक्ति का मार्ग प्राप्त कर लेना चाहिए स्वयं को ऐसे जीना चाहिए कि दूसरों
को कष्ट दिए बिना जियो और जीने दो के सिद्धांत का अनुकरण होता जाए।
मुनि श्री ने अपने मंगल प्रवचन में आगे कहा कि दमोह नगर बहुत सौभाग्यशाली हैं जो उन्हें बड़े बाबा के चरण छांव में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है विशेष पुरणोदय के साथ ही यह सौभाग्य प्राप्त होता है दमोह तो बड़े बाबा की देहरी के रूप में है ऐसा महान पुण्य प्रकार हमें अपनी दुर्लभ पर्याय को सार्थक बनाने की कोशिश अवश्य करनी चाहिए।
इसके पूर्व मुनि श्री अजीत सागर जी महाराज के साथ मुनि श्री विनम्र सागर जी महाराज का संघ सहित दमोह नगर आगमन पर मंगल अगवानी की गई इस मौके पर जैन पंचायत अध्यक्ष सुधीर सिंघई उपाध्यक्ष मीनू जैन महामंत्री पदम खली मंत्री आलोक पलंदी मुकेश जैन कुंडलपुर क्षेत्र कॉमेटी के पूर्व महामंत्री नवीन निराला सुनील वेजीटेरियन शैलेंद्र मयूर संजीव शाकाहारी पवन जैन चश्मा विनय विनम्र आदि की उपस्थित रहे मुनि श्री के पद प्रक्षालन का सौभाग्य जैन पंचायत उपाध्यक्ष मीनू जैन के परिवार को प्राप्त हुआ।
मुनि श्री अजीत सागर जी को पड़गाहन कराकर आहार कराने का सौभाग्य हथकरघा की बहनों धरम पिपरिया वाले नितिन मोदी परिवार को प्राप्त हुआ।
इधर मुनि श्री विनम्र सागर जी का पड़गाहन करके आहार देने का सौभाग्य वरिष्ठ समाजसेवी रूपचंद जैन संगम के छोटे भाई मीनू जैन परिवार को प्राप्त हुआ।
मुनि श्री अजित सागर विनम्र सागर जी संघ का रात्रि विश्राम एकलव्य में.. जैन धर्मशाला से शाम को मुनि श्री अजीत सागर महाराज संघ एवं मुनि श्री विनम्र सागर संघ का सागर रोड पर बिहार हो गया।
उनका रात्रि विश्राम एकलव्य विश्वविद्यालय में तथा प्रातः आहारचार्य बांसा में संभावित है।
बांसा में मुनि श्री विमल सागर संघ का हुआ मंगल प्रवेश..
दमोह।
महासमाधि धारक आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के शिष्य आचार्य श्री
समयसागर जी के आज्ञानुवर्ती मुनिश्री विमलसागर जी, मुनि श्री अनंत सागर जी,
मुनिश्री धर्म सागर जी, मुनिश्री भाव सागर जी महाराज का पारसनाथ दिगंबर
जैन मंदिर बांसा में मंगल प्रवेश हुआ। जगह-जगह पाद प्रक्षालन हुआ, आरती
उतारी गई ।
कमेटी ने श्रीफल अर्पण करके मुनि संघ से
प्रवास करने के लिए निवेदन किया। विभिन्न क्षेत्रों से आए लोगों ने श्रीफल
अर्पण किये। इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल
सागर जी महाराज ने कहा कि फास्ट फूड का त्याग करना चाहिए इनमें मांस आदि
हानिकारक पदार्थ होते हैं जिससे अनेक बीमारियां होती हैं, खड़े होकर भोजन
नहीं करना चाहिए सम्मान के साथ भोजन करना चाहिए पश्चिमी सभ्यता के कारण
खड़े होकर भोजन करने लगे हैं लोग ,भारतीय संस्कृति बैठकर भोजन करने की है
कमेटी ने बताया कि बांसा में 6- 7 दिन मुनि संघ रुक सकता है।
आचार्य गुरुदेव की छवि आचार्य समय सागर जी में नजर आती है..निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी..
दमोह
। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में परम पूज्य निर्यापक मुनि श्री वीर
सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा महापुरुष हुए हैं जिनका पूरा
जीवन आने वाली पीढ़ी के लिए होता है ।भगवान महावीर के बाद आचार्य कुंद कुंद
देव को याद करते हमने ना महावीर को देखा और ना कुंदकुंद देव को देखा
वर्तमान में देखा है तो आचार्य विद्यासागर जी को देखा जब आचार्य भगवन की
छवि को देखते तो आचार्य भगवन की तुलना आचार्य कुंदकुंद देव से और नवाचार
समय सागर जी की तुलना आचार्य श्री से करेंगे वैसे आचार श्री की तुलना
अतुलनीय है किसी से नहीं की जा सकती। आचार्य श्री की तुलना किसी से नहीं
उनका जीवन अतुल्य है कुछ ऐसे महापुरुष हो जाते हैं जिनके जाने के पश्चात
उनकी ख्याति उनका दिग्दर्शन उनके किए कार्य और अधिक बढ़ जाते हैं। उनका
जीवन स्वयं के लिए नहीं उनका जीवन मूल रूप से पर के लिए होता है ।जो लक्षण
आचार्य कुंदकुंद देव में वह लक्षण घटित होते आचार्य श्री में वर्तमान में
जब हम आचार्य समय सागर जी को देखते हैं द्रव्य से भाव से देखने में जो
द्रव्य मन वचन द्रव्य काया रहीबात भावों की वह अंतरंग का विषय है ।आचार्य
भगवन का औदारिक शरीर आचार्य समय सागर जी महाराज का औदारिक शरीर बिल्कुल
वैसा ही मिलता है वैसा ही गौर वर्ण आचार्य भगवन का देखने का जो तरीका उनकी
आंखें आचार्य समय सागर जी महाराज की आंखें आचार्य भगवान का बोलने का जो
तरीका वही आचार्य समय सागर जी का दिखाई देता है ।
आचार्य श्री हमारे दीक्षा
गुरु हैं पर हमें आचार्य समय सागर जी ने बढ़ाया वैराग्य के बारे में दृण
किया है। शिक्षा में तो पूज्यवर समय सागर जी महाराज ने जब हम घर में थे
मोक्ष मार्ग में बढ़ने संबल दिया है मार्ग दिया है शिक्षा दी है। 1994 का
रामटेक का वह दृश्य याद आता है हम आचार्य भगवान के पास कभी नहीं रहते थे
समय सागर महाराज जी के पास बैठे रहते थे निर्देशों का पालन अक्षरशः करते
चले गए। आचार्य श्री की छवि हमें शुरू से मिली थी उनमें ।जब हम आचार्य
भगवान को देखते उनकी छवि को देखते उनकी काया को देखते और आचार्य समय सागर
जी को देखते उनके बैठने का ढंग को देखते उनके देखने के ढंग को देखते दोनों
में ज्यादा अंतर नहीं। जब तक हम यह दृष्टि भीतर नहीं लाएं तब तक समर्पण की
वह दृष्टि आएगी नहीं ।मोक्ष मार्ग में प्रगति मोक्ष मार्ग में विकास
श्रद्धा समर्पण से आएगा ।आचार्य भगवन नहीं दिख रहे कोई बात नहीं जब हम उनकी
छवि देखने की कोशिश करेंगे मूल रूप से जो दिखता वह मायने नहीं रखता जो
देखने की कोशिश करते वह महत्वपूर्ण है ।
जो चर्म चक्षुओं से दिख रहा उन
आंखों से हमें द्रव्य ही नजर आता शरीर ही नजर आता है ।हमारे पंचेन्द्रिय का
विषय है हमारे मन का विषय है उनका शरीर उनका है काय से वाणी से वह वैसे ही
मिलते ।16 तारीख को आचार्य पदारोहण होने के पश्चात उसके पूर्व में और उसके
बाद की अवस्था में बहुत अंतर है। द्रव्य से और भाव से कार्य करने की शैली
में भी बहुत अंतर है ।जब वह निर्यापक समय सागर थे उस समय की उनकी शैली और
आचार्य बनने के बाद ऐसा लगता साक्षात आचार्य गुरुदेव ही बैठे हो, निर्देश
दे रहे हो। हम स्पष्ट बोल रहे कोई लाग लपेट नहीं यह ना समझे महाराज जी ने
हमें भेज दिया प्रशंसा कर रहा हूं ।विशुद्धि हमें बढ़ाना आत्म विकास करना
परिणामों में उज्जवलता बढ़ाना है आत्म कल्याण के लिए अपने भीतर वह भाव लाकर
सीखें जो पहले थे जो लक्षण आचार्य के बताएं वह गुरुदेव में घटित होते हैं।
पूज्यवर समय सागर जी की कार्यशैली को देखे कहीं कोई अंतर नजर नहीं आता।
जिनवाणी सुनने का भाव होना भव्य की पहचान है.. मुनि श्री प्रणम्यसागर जी..
दमोह
। परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने श्री दिगंबर जैन बड़ा
मंदिर हटा में प्रवचन देते हुए कहा आप सभी लोग कुंडलपुर की तलहटी में विराजमान
है ।प्रथम बार हटा आए थे 2022 में महोत्सव के दौरान आगरा से चलकर हटा होते
हुए कुंडलपुर पहुंचे थे । सम्मेद शिखर में जैसे मधुबन है पारसनाथ इसरी पहुंच
गए लगता सम्मेद शिखर आ गया। वैसा ही हटा आने पर महसूस होता है कुंडलपुर आ
गए। साधु के मन में विचार आता भले ही वह शहर कस्बे के लोगों ने निवेदन ना
किया हो पुण्य के प्रताप से निमित्त नैमित्तक संबंध हो जाता है। जो जल में
उत्पन्न होता है जलज होता है कमल होता है। जो भव्य जीव होते हैं भव्य जीव
को देव शास्त्र गुरु का निमित्त मिलता । नव्य होने के साथ-साथ भव्य आपका यह
जिनालय है । जिनालय में प्रवेश करते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है ।आप दर्शन
करने आते अच्छा लगता है ।यह हमारे अंदर की पहचान है जिनवाणी जिनेंद्र देव
की वाणी है भव्य जीव को जिनवाणी सुनने का भाव आता है अच्छा लगता है। भव्य
का मतलब अच्छा लगना जिनवाणी सुनने का भाव होना भव्य की पहचान है ।हाल ही
में2 वर्ष के अंदर दो महोत्सव हो गए ।नवीन आचार्य के सानिध्य में भी
महोत्सव हो गया । देव शास्त्र गुरु की वाणी हमें अच्छी लगे यही भव्यता की
पहचान है ।आचार्य श्री का सानिध्य आपको कई बार मिला ।जैन गीता समण सुक्तम
का पद्यानुवाद यहां बैठकर किया। जिसमें लीन होकर भव्य जीव संसार सागर से
मुक्ति प्राप्त कर जाते। जिन शासन में हम जन्म लिए हैं जो मूल रूप जो चीजें
हैं उनके बारे में हमें श्रद्धान होना चाहिए ।जिनालय में प्रवेश करने से
पहले हमें हाथ पैर धोकर ही प्रवेश करना चाहिए। कोई गंदगी अंदर नहीं प्रवेश
करें ।यह आदर भाव से श्रद्धा बढ़ेगी। देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्धा
आदर का भाव बनाए रखना उसी को सम्यक दर्शन कहा जाता है ।हम भगवान से
प्रार्थना करते हम जीवन के अंत में सजग रहें ।आपके प्रति आदर का भाव बना
रहे ।जीवन के अंत में त्याग का भी त्याग कर देते हैं।
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