मुनिराजों ने किया कार्यक्रम स्थल का अवलोकन..
दमोह
। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र ,जैनतीर्थ कुंडलपुर में 16 अप्रैल को आयोजित
आचार्य पद पदारोहण अनुष्ठान कार्यक्रम हेतु विशाल पंडाल का निर्माण किया
गया है निर्यापक श्रमण श्री नियम सागर जी महाराज, निर्यापक श्रमण मुनि
पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज, निर्यापक श्रमण श्री समतासागर जी महाराज,
निर्यापक श्रमण श्री अभयसागर जी महाराज, मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज
ने पंडाल का अवलोकन किया और आवश्यक दिशा निर्देश दिए ।
पंडाल में व्यापक
व्यवस्थाएं की गई हैं। मुनि संघ मंच पर विराजमान होंगे। आर्यिका संघ, ऐलक,
क्षुल्लक जी महाराज अलग विराजमान होंगे । सरसंघ संचालक श्री मोहन भागवत जी
अतिथियों को बैठने के लिए अलग मंच होगा ।हथकरघा, प्रतिभास्थली, दयोदय
,भाग्योदय आदि प्रकल्प जो आचार्य श्री ने प्रारंभ कराए हैं वो अपनी जानकारी
देंगे, ब्रह्मचारी भैया जी, दीदी जी, प्रतिभास्थली की दीदी को बैठने अलग
व्यवस्था होगी । श्रेष्ठीजनों को, कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी, महोत्सव समिति,
कैमरामैन, मीडिया को बैठने अलग व्यवस्था की गई है। लाखों जन समूह इस
कार्यक्रम को देखेगा । 34 एलईडी के माध्यम से जनसमूह कार्यक्रम देख सकेंगे।
दमोह रेलवे स्टेशन पर कुंडलपुर बस सेवा कार्यालय प्रारंभ.. कुंडलपुर में 16 अप्रैल को दोपहर 2:00 बजे से
अचार्य पद पदारोहण कार्यक्रम भव्याति भव्य रूप से आयोजित होने जा रहा है।
जिसमें लाखों की संख्या में भक्तों के जुड़ने की संभावना है। जिसे देखते
हुए कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी ,महोत्सव समिति यातायात व्यवस्था प्रभारी की ओर
से 13 अप्रैल को दमोह रेलवे स्टेशन पर निःशुल्क बस सेवा के संचालन हेतु
कार्यालय प्रारंभ किया गया है ।जिसमें बाहर से पधारे हुए यात्रियों को
कुंडलपुर पहचाने के लिए 24 घंटे बस सेवा उपलब्ध रहेगी ।यातायात प्रभारी
सोनू नेता सह प्रभारी राहुल जैन पत्रकार अपनी टीम के साथ यातायात व्यवस्था
को सुचारू रूप से संचालित करने में सेवारत हैं। हटा ,दमोह आदि नगरों से
बसें चलाई जा रही हैं। कुंडलपुर में बसों द्वारा यात्रियों को बड़े बाबा
मंदिर तक आने-जाने की व्यवस्था की गई है।
आचार्य श्री का प्रथम दर्शन कुंडलपुर में किया और उन्ही का होकर रह गया-मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
विश्व प्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर में अर्हम योग प्रणेता पूज्य मुनि
श्री प्रणम्यसागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा परम पूज्य
निर्यापक श्रमण भावी आचार्य श्री समय सागर जी महाराज ने संकेत दिया आज आपको
मंच पर प्रवचन करना है तो हमने महाराज जी से निवेदन किया आपकी उपस्थिति ही
लोगों के लिए अनिवार्य है उपस्थिती प्रेरणादाई होगी आप मंच पर विराजमान हो
लेकिन महाराज जी ने कहा आज हमारी व्यस्ततायें हैं हमने कहा हम बहुत लघु
हैं आपके समक्ष ही कुछ अच्छा लगेगा तो महाराज जी ने याद दिलाया आप पहले भी
ऐसा कर चुके हो जब आचार्य जी ने आपको महोत्सव में सबसे पहले कहा था और आप
प्रवचन करने गए थे। वह याद जो महाराज जी ने दिलाई ऐसी कई यादें इस क्षेत्र
में बड़े बाबा छोटे बाबा के साथ में जुड़ी थी ।
कहा जाए तो हमारे जीवन की
शुरुआत सच्चे मायने में कुंडलपुर क्षेत्र से ही हुई थी ।वात उस समय की है
जब आचार्य श्री यहीं पर चतुर्मास कर रहे थे 95 में हमने कभी आचार्य श्री
को नहीं देखा था ।हम ऐसे दूर इलाके के बंदे थे जहां महाराज श्री का सानिध्य
कम मिलता ।हम उस क्षेत्र प्रांत की बात कर रहे हैं जहां मैं जन्मा हूं उस
प्रदेश में उनका पहला चातुर्मास 75 में फिरोजाबाद में हुआ ।आप समझ गए होंगे
हम किस प्रदेश की बात कर रहे हैं ।संयोग की बात इस देह का जन्म भी उसी समय
हुआ जब 75 में आचार्य श्री का चातुर्मास हुआ था।भोगांव में मेरा जन्म हुआ
था ।आप सोच सकते हो हम उस समय में क्या थे। आचार्य महाराज चातुर्मास करके
गए शायद उनके चातुर्मास की वर्गणायें का यह प्रभाव होगा। हमने कभी आचार्य
श्री के दर्शन नहीं किये केवल उनके चर्चे सुने थे बातें सुनने में आती थी
।आप जानते हैं वह उत्तर प्रदेश फिरोजाबाद के आसपास का ऐसा स्थान है जहां
पास में सिरसागंज है और वहीं पर पढ़ाई लिखाई का सारा कारोबार वही हो रहा था
।इटावा, चंबल का भिंड का इलाका कहलाता वहां कभी साधु संतों का ज्यादा
आवागमन नहीं होता और ऐसी स्थिति में जहां धर्म का वातावरण ना हो अचानक से
मन में एक भाव उत्पन्न होता कि मैं जिनकी चर्चा सुनता रहा हूं उनका दर्शन
कर पाऊं या ना कर पाऊं ऐसा मन में भाव आ जाना और वह भाव आने के बाद मन में
विचार आना कि जिनके बारे में मैं सुनता हूं क्या सुनता हूं लोग आपस में
चर्चा करते हैं रहते थे कहीं वर्तमान में तीर्थंकर जैसी चर्या को कही देखना
है तीर्थंकर स्वरूप को देखना है दर्शन करना है तो बुंदेलखंड चले जाओ
आचार्य विद्यासागर महाराज विराजमान है। ऐसा सुना करता था वह आज भी याद है
केवल उन शब्दों को सुनकर मन में श्रद्धा का भाव उत्पन्न हुआ शायद हम भी कभी
ऐसा गुरु महाराज के दर्शन कर पाए लेकिन दर्शन करने के लिए बहुत कुछ
निमित्त आवश्यक होते हैं ।यह तो उस बच्चे के भाव हैं कभी 11वीं 12वीं पढ़
रहा था और उस समय उसके मन में भाव आए। कुछ वर्ष के बाद में फिर एक भाव आया
और अचानक से एक दिन एक स्वप्न दिखाई दिया उस स्वप्न में हमने दो आचार्य को
बहुत हंसते देखा खिलखिलाते देखा ।आज भी वैसे हंसी हमारे मस्तक में घूमती है
और उसमें आचार्य महाराज बड़ी प्रसन्न मुद्रा में हंस रहे थे। एक आचार्य थे
उनको मैं जानता था उनके संपर्क में आने लगा था दूसरे आचार्य के बारे में
मैंने सुना यह कौन हो सकते हैं उस मंदिरमें कहीं गुरु महाराज की फोटो मिल
गई थी याने मैंने कभी गुरु महाराज का फोटो भी नहीं देखा था और पहली बार
गुरु महाराज ने हमें दर्शन दिया तो वह सपने में दर्शन दिया जब हमे दर्शन
हो गया तो मेरा एक मित्र था धार्मिक था जिनका नाम सुकौशल था आज आचार्य
महाराज के संघ में अभिनंदन सागर के नाम से जाने जाते हैं ।मुनि महाराज को
जिनका मैंने दर्शन किया एक को तो जानता था दूसरे को नहीं जानता यह कौन हो
सकते हैं नाम सुना है कभी फोटो नहीं देखी उन सुकौशल भाई साहब ने कहीं से
फोटो लाकर दिखाई वह फोटो दिखाई तो दो शिखर के बीच में आचार्य महाराज बैठे
हुए हैं रामटेक की वह फोटो ।उस फोटो को देखने के बाद मैंने कहा यह तो वही
है जिन्हें मैंने सपने में देखा। फोटो देखने के बाद हमें समझ में आया कि
आचार्य महाराज ने मुझे स्वप्न में दर्शन दिया लेकिन उससे कोई ऐसा नहीं लगा
कि उन्होंने स्वप्न में दर्शन क्यों दिया ।हम अपनी लौकिक पढ़ाई पढ़ रहे थे
पढ़ते रहे लखनऊ चले गए सब कुछ चलता रहा लेकिन इस बीच कुछ ना कुछ ऐसे प्रसंग
बनते गए कहीं ना कहीं दूसरी लाइन पर जाने प्रेरित करते गए ।उसी समय ये
परिणाम निकला कि बीएससी कंप्लीट करने के बाद सीधे पहले उन आचार्य महाराज के
पास पहुंच गए आचार्य पुष्पदंत महाराज के पास।एक साल वहां रहे फिर हमने
वहां से मन बनाया तो हमें आचार्य महाराज के दर्शन करने हैं। हमारे मन में
पहले से भावना थी दर्शन नहीं हो पा रहे थे। एक संघ से दूसरे संघ में आना
कठिन कार्य होता है। उस स्थिति में तरह-तरह की बहाने बनाकर कि मुझे तो
बुंदेलखंड की यात्रा करनी है तीर्थ के दर्शन करने हैं वहां से निकले और मन
में भाव था मुझे एक बार अचार्य महाराज के दर्शन करने हैं पहली बार जब सपने
में आचार्य महाराज के दर्शन किए थे तभी मन में भाव था जब भी आचार्य महाराज
के दर्शन करूंगा मैं लेट जाऊंगा साष्टांग नमस्कार करूंगा। अपने मन में भाव
आया आचार्य महाराज चाहे चल रहे हो, धूल हो ,कीचड़ हो मैं लेट जाऊंगा। मेरे
भाव थे अतः प्रेरणा से भावना बनी जब 95 में आचार्य महाराज यहां कुंडलपुर
में विराजमान थे तो यहां आया और मन में विकल्प थे एक संघ से दूसरे संघ में
आना मेरे मन में भावना थी आचार्य महाराज के एक बार दर्शन करना है ।हम आये
52 नंबर का मंदिर है आदिनाथ भगवान का मंदिर आचार्य श्री वहीं बैठे थे उनका
आसान लगा था लोगों से चर्चा कर रहे थे मैंने जैसे ही एंट्री ली मन में जो
भाव था साष्टांग नमस्कार करूंगा केश लॉन्च करके आया था आचार्य महाराज के
सामने लेट गया आचार्य महाराज ने देख लिया कोई ब्रह्मचारी आया है उसे समय
किसी ने कोई रोक नहीं ।उनके चरणों को छुआ मुंह उठाकर देखने लगा ।आचार्य
महाराज ने कहा क्यों ब्रह्मचारी कहां से आए हो मेरे मन में जो नेगेटिव भाव
थे यहां के बारे में आ रहे थे सब घुल गए दिल बाग बाग हो गया ।मुझे लगा
दुनिया की जन्नत मिल गई हो ।उस समय आचार्य महाराज के इतना बोलने पर मन खुश
हो गया ।आचार्य महाराज ने बोलना शुरू किया कुछ मैंने भी बोलना शुरू कर दिया
।पहले दर्शन में आचार्य महाराज ने पूरा परिचय पूछ लिया ।उस समय जब भी घंटी
बजती थी सभी मुनि महाराज मंदिर से यहां आ जाते थे सभी महाराज को तब देखकर
लगता था चौथे काल के मुनि महाराज के दर्शन हो रहे हो ।मन में विचार आया अब
आगे का मार्ग आचार्य श्री के ही संघ में रहकर ही तय करूंगा ।अब आचार्य
महाराज को छोड़कर नहीं जाऊंगा और किसी को गुरु नहीं बनाऊंगा और मैं इन्हीं
का होकर रह गया ।कुंडलपुर की स्मृतियां आज भी घूमती रहती हैं। प्रस्तुति-
जयकुमार जैन जलज मीडिया प्रभारी
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