परछाई को भी मात देने वाले दिन का सामना हुआ आज
भोपाल। गर्मी में साया ने भी छोड़ा साथ काया का इसका विज्ञान समझाया सारिका ने। परछाई को भी मात देने वाले दिन का सामना कर रहे मध्यान्ह में भोपाल की सड़को पर चलते हुये किसी बिल्डिंग की छाया की तलाश करने का विचार करने वालो को निराश होना पड़ा । बिल्डिंग क्या आपका साया ही आपका साथ छोड़ रहा था ।
इस खगोलीय घटनाक्रम को समझाने के लिए आज नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने छाया और काया कार्यक्रम का आयोजन किया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के पूर्व सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा उपस्थित हुये। जिन्होंने बारीकी से खगोलीय घटना को देखा समझा और जाना।
सारिका ने बताया कि मकर तथा कर्क रेखा के बीच स्थित शहरों में साल में सिर्फ दो दिन ही मध्यान्ह के समय परछाया उस वस्तु के ठीक नीचे बनती है जिससे वह दिखाई नहीं देती है । इसे ही जीरो शैडो डे कहते हैं । दिन में साया का काया से साथ साल में बाकी 363 दिन ही साथ रहता है।
सारिका ने बताया कि यह तिथि इस बात पर निर्भर करती है कि उस स्थान का अक्षांश क्या है । भोपाल के लिये यह स्थिति प्रथम बार लगभग 15 जून के आसपास आती है । दूसरी बार 28 जून को यह स्थिति आती है । दोपहर के समय इन दो दिनों को छोड़कर बाकी दिन छाया की लंबाई कुछ न कुछ अवश्य रहती है । कर्क रेखा पर स्थित नगरों में यह 21 जून को होती है जिसमें उज्जैन शामिल है ।
सारिका ने अपने प्रयोगों में 4 इंच डायमीटर पाईप के नीचे पारदर्शी कांच रखकर सूर्य की पूरी किरणों को नीचे जाकर कागज पर बनते गोल से बताया कि इस समय सूर्य ठीक सिर के उपर है जिससे मध्यान्ह के समय सारी किरणें लंबवत होकर पाईप की दीवार से नहीं टकरा रही हैं । प्रोफेसर आशुतोष शर्मा की उपस्थिति में प्रयोग को मध्यान्ह के बाद भी किया गया ।
जिसमें अलग-अलग समय परछाई के घटने और बढ़ने को बताया गया । उत्तरी भोपाल में रहने वाले अनेक लोगो को जब इस बात की जानकारी लगी तो आज दोपहर अपनी काया के आसपास उसकी साया को तलाशने की कोशिश की गई। क्योंकि सूर्य दोपहर बाद तक बहुत आगे नहीं बढ़ा था ।- सारिका घारू @GharuSarika
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