Ticker

6/recent/ticker-posts
1 / 1

भक्तों को बीमारी से बचाने के लिए खुद बीमार हुए भगवान.. जगदीश स्वामी मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमारी के कारण 15 दिनाें तक भक्ताे काे दर्शन नहीं देगें.. 20 जून को निकलेगी भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा..

भक्तों को बीमारी से बचाने हेतु खुद बीमार हुए भगवान
दमोह। दमोह शहर के पुराना थाने पर विराजमान भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार होने के बाद 15 दिनों तक आराम करते है. आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं और इस दौरान उनकी सेवा की जाती है.भक्तों को बीमारी से बचाने के लिए खुद बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ भक्तों की रक्षा के लिए खुद बीमार पड़ते हैं  पुराना थाना जगदीश स्वामी मंदिर के महंत श्री नर्मदा प्रसाद गर्ग जी महाराज ने जानकारी देते हुए बताया है कि उड़ीसा के जगन्नाथ स्वामी मंदिर के साथ देशभर के सभी जगन्नाथ स्वामी मंदिराे मे ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा से आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा तक भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार रहते है एवं आषाढ़ शुक्ल द्वितीया रथ दाेज काे भगवान अपने भाई बलभद्र बहिन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार हाेकर भ्रमण के लिए निकलकर अपने भक्ताे काे दर्शन देते है..
इसके पीछे एक कथा हैओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के एक भक्त रहते थे जिनका नाम था श्री माधव दास. श्री माधव यहां अकेले ही रहते थे और उन्हें संसार से कोई लेना-देना नहीं था. वे अकेले बैठे-बैठे प्रभु जगन्नाथ का भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु के दर्शन करते थे, उन्हीं को अपना सखा मानते थे और प्रभु के साथ खेलते थे. इतना ही नहीं, प्रभु भी अपने परम भक्त श्री माधव के साथ अनेक लीलाएं किया करते थे. प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे, भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे.जब रोगग्रस्त हो गए थे प्रभु जगन्नाथ के परम भक्त श्री माधव दास अतिसार उलटी-दस्त से पीड़ित हो गए थे. वे इस रोग के कारण बहुत दुर्बल हो गए थे वे उठने-बैठने के लिए भी समर्थ नहीं थे. हालांकि, अपनी क्षमता के अनुसार वे अपने सभी कार्य स्वयं ही करते थे और किसी भी अन्य व्यक्ति से मदद नहीं लेते थे. कोई कहे महाराज जी हम आपकी सेवा कर दें, तो वे कहते थे कि नहीं, मेरे तो एक जगन्नाथ ही हैं वही मेरी रक्षा करेंगे. ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया तो वे उठने-बैठने में पूरी तरह से असमर्थ हो गए. तब श्री जगन्नाथ जी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुंचे और माधव दास जी को कहा कि हम आपकी सेवा कर दें.
भक्तों के लिए आपने क्या नही किया. क्योंकि उनका रोग इतना बढ़ गया था कि उन्हें पता भी नहीं चलता था कि वे कब मल-मूत्र त्याग देते थे जिसकी वजह से उनके वस्त्र गंदे हो जाते थे. उन वस्त्रों को भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने हाथों से साफ करते थे. इतना ही नहीं, प्रभु उनके पूरे शरीर को भी साफ करते थे. प्रभु जगन्नाथ द्वारा की जाने वाली सेवा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोई अपना भी किसी की इतनी सेवा नहीं कर सकता जब माधव दास जी को होश आया तब उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि यह तो मेरे प्रभु ही हैं. एक दिन श्री माधव दास जी ने प्रभु से पूछ ही लिया, “प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो, आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना ही नहीं पड़ता भक्त की बातें सुनकर प्रभु ने कहा, देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की. जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है. अगर उसे काटोगे तो इस जन्म में नहीं, लेकिन उसे भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं नहीं चाहता कि मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण फिर अगला जन्म लेना पड़े. इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता.
प्रभु जगन्नाथ अपने भक्तों के सहायक बन उन्हें प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं. प्रभु ने अपने भक्त माधव से कहा अब तुम्हारे प्रारब्ध में 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे. जिसके बाद प्रभु जगन्नाथ ने अपने भक्त माधव दास के बचे हुए 15 दिन का रोग स्वयं ले लिया. यही वजह है कि भगवान जगन्नाथ आज भी बीमार होते हैं.
ये तो हो गई उस समय की बात, लेकिन भक्त वत्सलता देखिए. भगवान जगन्नाथ को आज भी साल में एक बार स्नान कराया जाता है, जिसे स्नान यात्रा कहते हैं. स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते हैं. इस दौरान पुरी में स्थित प्रभु जगन्नाथ का मंदिर 15 दिन के लिए बंद कर दिया जाता है. इस दौरान प्रभु की रसोई भी बंद कर दी जाती है जो कभी बंद नहीं होती. भगवान की इस अवस्था के दौरान उन्हें 56 भोग नहीं खिलाया जाता. इस समय उन्हें 15 दिनों तक आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है.जगन्नाथ धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं. काढ़े के अलावा प्रभु को फलों का रस भी दिया जाता है. उन्हें रोजाना शीतल लेप भी लगाया जाता है. बीमारी के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है.भगवान जगन्नाथ बीमार होने के बाद 15 दिनों तक आराम करते है. आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं और उनकी सेवा की जाती है, ताकि वे जल्द से जल्द ठीक हो जाएं. जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते हैं उसी दिन आषाढ़ शुक्ल द्वितीया काम प्रभु जगन्नाथ की यात्रा निकला जाती है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन पाने के लिए वहां असंख्य भक्त उमड़ते हैं. मान्यताओं के मुताबिक भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को बीमारी से बचाने के लिए हर साल खुद बीमार पड़ते हैं ताकि भक्तों के दुख-दर्द वे अपने ऊपर ले।

Post a Comment

0 Comments