मसीही समाज में पॉम सण्डे (खजूर का रविवार) का विशेष महत्व है। यह उस समय की घटना है जब प्रभु यीशु मसीह अपने सांसारिक जीवन की सेवकाई के अंतिम भाग में हैं। वह यरूशलेम नगर में प्रवेश करते हैं जो कि विशिष्ट शहर है। यरूशलेम जो कि सारी घटनाओं का केन्द्र है, यरूशलेम में एक बड़ा पर्व मनाया जा रहा है जिसे फसह का पर्व कहा जाता है। लाखों की संख्या में लोग इस पर्व को मनाने के लिए आये हुए हैं। प्रभु यीशु मसीह गदही के बच्चे पर सवार होकर यरूशलेम में प्रवेश करते हैं।
इसी दिन को याद करते हुए दमोह के मसीही समाज के लोगों ने समाजगृह से एक जुलूस निकाला जिसकी अगुवाई चर्च काउन्सिल अध्यक्ष डॉ. अजय लाल एवं सण्डे स्कूल प्रभारी डॉ. श्रीमती इन्दु लाल के द्वारा की गई जिसमें जुलूस किल्लाई चौराहे से होते हुए बस स्टेण्ड, घण्टाघर से दमोह स्थित चर्च भवन में आराधना सभा में परिवर्तित हो गया जहां पर खजूर की रविवारीय आराधना प्रारंभ हुई।
प्रारंभ में मसीही गीत गॉस्पल कैरियर्स टीम के अंकित डॉयमण्ड, मार्शल मैसी एवं अभिनव चटर्जी के द्वारा गाया गया। आराधना सभा के मुख्य वक्ता भाई जॉश हावर्ड ने पॉम सण्डे पर सारगर्भित विचार व्यक्त किये जिनका अनुवाद डॉ. अजय लाल ने करते हुए कहा कि ‘‘जैसा कि वचन हमें सिखाता है, दो हजार वर्ष पहले एक जुलूस निकला था जिसमें हजारों लोग थे जिनके हाथों में खजूर की डालियां थीं वे यीषु मसीह के सामने खजूर की डालियां बिछा रहे थे, कपड़े बिछा रहे थे।
साथ ही होशन्ना-होशन्ना के नारे लगा रहे थे। होशन्ना का अर्थ होता है हमें बचा। क्रूर साम्राज्य से यीशु ही उन्हें बचा सकता है। इस साम्राज्य को यीशु मसीह समाप्त करके राजा बन जाये, यह उस भीड़ की इच्छा रही किन्तु ऐसा ना होने पर उसी भीड़ ने दूसरा नारा लगाया कि ‘‘यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ा दिया जाये क्योंकि उनकी इच्छा थी यीशु मसीह राजा बने पर उनको जब यह नहीं मिला तो उन्होंने यीशु मसीह को क्रूस की मृत्यु दिये जाने के नारे लगाये।’’
यह घटना हमें बताती है कि चाहे जीवन में सुख हों चाहे दुःख हों, हमें यीशु मसीह के ही पीछे चलना है। चाहे हम कितनी ही ऊचाईयांें पर रहें या दुःख से कितनी ही निचाईयों पर रहें हमें यीशु मसीह के ही साथ रहना है। हमारे जीवनांे में हमारी नहीं वरन् परमेश्वर की इच्छा उसी तरह पूरी होनी चाहिए जैसे कि परमेश्वर ने यीषु मसीह को कब्र में जाने से नहीं बचाया पर परमेश्वर ने कब्र में से बचा लिया। उनका पुनरुत्थान हुआ’’।
कार्यक्रम में विशेष रूप से श्रीमती अभिलाषा हावर्ड, सारिका लाल, जोशाया, जर्मायाह, ज़ारा सहित संजीव लैम्बर्ट, डॉ. डैनिएल मनोरथ, एफ. हेरीसन, डॉ. नवीन लाल, निशान्त वाल्टर्स सहित प्राचीन व मसीही समाज के वरिष्ठजनों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन ग्लोरी वाल्टर्स के द्वारा गरिमामय रूप से किया गया।आभा लाल के द्वारा संदेश से संबंधित बाइबिल पाठ का पठन किया गया। इस अवसर पर सण्डे स्कूल की प्रभारी डॉ. श्रीमती इन्दु लाल के द्वारा सभी के प्रति धन्यवाद एवं आभार व्यक्त किया गया। सण्डे स्कूल के छात्र-छात्राओं के द्वारा ‘‘तो गाओ हालेलूय्याह’’ मसीही गीत का गायन किया गया।
चर्च काउन्सिल के अध्यक्ष डॉ. अजय लाल के द्वारा समाज से संबंधित सूचनाएं प्रदान करते हुए कहा गया कि मेरा परिवार अभी एक बड़े दुःख के दौर से गुजरा है। मेरी माता डॉ. श्रीमती पुष्पा विजय लाल का निधन हुआ। यह समय मेरे परिवार के लिए कठिन रहा लेकिन दमोह शहर के सभी राजनैतिक दलों के साथ सभी धर्म के लोगों ने इस कठिन समय में मुझे व मेरे परिवार को सांत्वना दी, साथ दिया। सी.आई.सी.एम. एवं एम.आई.सी.एस. के सदस्यों का भी साथ मुझे मिला।
मैं आप सभी के सहयोग के लिए अपने एवं अपने परिवार की ओर से धन्यवाद ज्ञापित करता हूं। कार्यक्रम में मसीही गीतों का सामूहिक गायन किया गया। वंदना चरण की अंतिम प्रार्थना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। अंत में परमेश्वर की आशीष डॉ. प्रवीण पाल के द्वारा व्यक्त की गई। कार्यक्रम में सण्डे स्कूल के छात्र-छात्राओं के साथ बड़ी संख्या में मसीही समाज समाज के युवाओं एवं महिला-पुरूषो की उपस्थिति रही। रवि किरण अग्निहोत्री की रिपोर्ट..
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