मप्र स्थापना दिवस और लोह पुरुष की जयंती पर भी सरदार पटेल ओवरब्रिज पर कायम रहे घनघोर अंधेरे के हालात..
दमोह। तुम्हें जिंदगी के उजाले मुबारक हमें अब अंधेरे रास आ चुके हैं.. 1970 के दशक की पुरानी फ़िल्म का यह विरह गीत 20 वीं सदी के 21 वे दशक में सरदार वल्लभ भाई पटेल ओवरब्रिज स्ट्रीट लाइट मामले में एकदम सटीक उतरता नजर आ रहा है।
मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के मौके पर सभी सरकारी भवन जहां रंगीन रोशनी से जगमगाती 5 दिन पहले ही दीपोत्सव का एहसास करा रहे हैं वही सरदार पटेल जयंती के मौके पर उनके नाम से निर्मित सेतु अंधेरे में ज्यों का त्यों डूबा दुर्दशा के आंसू बहाता रहा। जबकि आज ही लोह पुरुष की जयंती अवसर पर यहा केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के साथ सैकड़ो नेता बाइक रैली के साथ सरदार पटेल को नमन करने इस क्षेत्र में पहुंचे थे।जिससे ओवर ब्रिज के पास कई घंटों तक नेताओं का जमावड़ा लगा था।
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल से लेकर प्रदेश सरकार के तीन पूर्व मंत्रियों जयंत मलैया, रामकृष्ण कुसमरिया और राजा पटेरिया के अलावा जिले के चारो विधायक रामबाई सिंह परिहार, पीएल तंतुबाय, धर्मेंद्र लोधी और अजय टंडन से लेकर अन्य नेताओं ने सरदार पटेल के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित व माल्यार्पण किया था और बाद में धुआंधर भाषण के साथ श्रद्धा सुमन अर्पित किए थे।
उस समय तक किसी को अंदाजा नहीं था की रात में यहां पर फिर से "ढाक के तीन पात" जैसे हालात निर्मित हो जाएंगे। दरअसल सरदार पटेल ओवर ब्रिज की स्ट्रीट लाइट बिजली बिल जमा नहीं होने की वजह से विद्युत मंडल द्वारा कट कर दी गई थी। जिससे 2 वर्षों से यह ब्रिज अंधेरे में डूबा हुआ है पिछले साल भी यहां स्ट्रीट लाइट चालू करने को लेकर किसान कांग्रेस अध्यक्ष नितिन मिश्रा सहित अन्य नेताओं द्वारा मशाल जुलूस निकालकर प्रदर्शन करते हुए ज्ञापन दिए गए थे वहीं इस बार छात्र क्रांति दल और सरदार बल्लभ भाई पटेल स्मृति संस्थान के संयोजक कृष्णा पटेल द्वारा जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर स्ट्रीट लाइट चालू नहीं होने की दशा में चक्का जाम आंदोलन जैसी चेतावनी भी दी गई थी।
इसके बावजूद जिला प्रशासन से लेकर सरदार पटेल के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं ने इस ब्रिज के अंधियारे को दूर करने जरा भी ख्याल नहीं किया। शायद इसी का नतीजा रहा कि अमावस की काली रात जैसी छटा मध्यप्रदेश स्थापना दिवस की पूर्व बेला में भी यहां बिखरती रही। दरअसल हिरदेपुर पंचायत में आने वाले इस ओवर ब्रिज की स्ट्रीट लाइटों का बिजली बिल जमा कराने अलग से बजट का कोई प्रावधान नही किया गया है। जिससे बिजली बिल नही भरने पर यहां की स्ट्रीट लाइट कनेक्शन को बिजली विभाग दो साल पहले काट चुका है।
ऐसे में जनप्रतिनिधि इंटरेस्ट लेते और प्रशासन चाहता तो किसी भी मद से बिल की राशि को एडजस्ट करा सकते थे। इधर नगरपालिका के परिसीमन वृद्धि के प्रस्ताव के राजपत्र में प्रकाशित होने के साथ यह एरिया भी नगर पालिका सीमा में शामिल माना जा सकता है। ऐसे में पालिका प्रशासक होने के नाते भी कलैक्टर महोदय ओवरब्रिज की लाइट को चालू करा सकते थे। लेकिन इस और भी ध्यान देना जरूरी नहीं समझा गया। इसी का नतीजा रहा कि सरदार पटेल जयंती के मौके पर दिन के समय जहां नेताओं का मेला लगा था वहां रात के अंधेरे में पहले जैसे हालात बने रहे।
यहां पर इतना सब कुछ लिखने का आशय यही है कि जब केंद्रीय मंत्री के सरदार पटेल को लेकर इतनी रुचि लेने के बावजूद उनके नाम पर समर्पित ओवर ब्रिज के अंधेरे को दूर करने की ओर किस का ध्यान नहीं है तो ऐसे में अन्य क्षेत्रों की बिजली समस्या की तो चर्चा करना ही बेकार है..
शुरुआती दौर से राजनीतिक खींचतान का शिकार होता रहा है ओवर ब्रिज..
सागर नाका क्षेत्र में जल्दबाजी में निर्मित कराए गए रेलवे ओवरब्रिज के साथ दमोह वासियों का दुर्भाग्य ही रहा कि राजनीतिक खींचतान के चलते ओवर ब्रिज का उद्घाटन करने के लिए रेल राज्य मंत्री आते-आते रह गए और इसी के साथ विभिन्न रेल सुविधाओं को लेकर मिलने वाली सौगात भी हाशिए पर चली गई.. इधर ब्रिज के उद्घाटन के साथ नजर आने वाली रोशनी कुछ महीनों बाद कब ओझल हो गई इसका पता लोगों को तब चला जब महीनों तक ब्रिज कि स्ट्रीट लाइट की बत्तियां नहीं जली..
कुल मिलाकर वर्तमान समय में उपयोगी साबित हो रहा यह ओवर ब्रिज यदि 1 किलोमीटर आगे बाईपास मार्ग के समीप बनता तो शायद आने वाले अनेक वर्षों तक और भी अधिक उपयोगी साबित होता लेकिन उस समय प्रमुख जिम्मेदारों की चुप्पी आने वाले वर्षों में जरूर खलेगी क्योंकि नगर पालिका परिसीमन बढ़ने के साथ यह ओवरब्रिज भी शहरी क्षेत्र में आ जाएगा और ऐसे में बाईपास से अंदर आने वाले हेवी लोडेड वाहन पहले जैसे घमासान के हालात निर्मित करेंगे..राजेन्द्र अटल
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