नदी के रास्ते रोड पर आ रहे युवक की जल समाधि..
दमोह। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 6 साल पहले 5 करोड़ की लागत से निर्मित जोगी डाबर सड़क का करीब एक किलोमीटर का पहाड़ी घाट आज भी अधूरा पड़ा है जिस वजह से ग्रामीण जनों को मजबूरी में व्यारमा नदी के रास्ते बर्र्ट घाट के पुल के पास पहुचकर आगे का आवागमन करना पड़ता है।
पटेरा ब्लाक के जोगी डाबर गांव में वर्षों से ऐसे हालात हैं गर्मी के दिनों में जब नदी सूख जाती है तो पैदल और बाइक सवार लोगों को भी दिक्कत नहीं होती लेकिन इस बार नौतपा के पहले ही झमाझम बारिश हो जाने से व्यारमा नदी का जलस्तर बढ़ा हुआ है। फिर भी मेन रोड तक पहुंचने के लिए नदी को पार करना जोगी डाबर गांव के लोगों की मजबूरी बनी हुई है। ऐसे ही कुछ हालात में लाक डाउन खत्म होने पर 5 जून को जोगी डाबर गांव निवासी युवक राजू बर्मन कंधे पर बैग टांग कर काम की तलाश में कटनी जाने के लिए घर से निकला था। लेकिन शाम को उसकी नदी में डूबने से मौत की सूचना परिजनों तक पहुंची। जानकारी लगने पर कुम्हारी थाना प्रभारी आरए पांडे पुलिस के साथ मौके पर पहुंचे तथा गोता खोरों की मदद से युवक का शव बाहर निकलवा कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया।
इस दौरान रोते बिलखते परिजन तथा ग्रामीण जनों का कहना था कि मजबूरी में उनको नदी पार करके मैन रोड तक आना पड़ता है। यदि जोगी डाबर से सीधे कटनी मार्ग को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण कार्य कंप्लीट हो जाता तो ग्रामीणों को साल भर आवागमन की सुविधा बनी रहती। लेकिन 5 करोड़ खर्च के बाद भी वह सड़क उपयोगहीन बनी हुई है।
वन विभाग की मंजूरी के बिना काटा पहाड़ फिर भी अधिकारीयो ने कर दिया ठेकेदार का भुगतान..
इसकी जानकारी लगने पर वन विभाग द्वारा ठेकेदार की मशीन आदि जप्त करते हुए कार्यवाही की गई जिसके खिलाफ ठेकेदार कोर्ट में चला गया जिससे कार्य आज भी अधूरा पड़ा हुआ है। इधर प्रधानमंत्री सड़क योजना के साइड इंचार्ज इंजीनियर और वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत से ठेकेदार राजेंद्र बग्गा का लाखों रुपए का पहाड़ कटिंग का वह भुगतान भी कर दिया जिसकी मंजूरी विभाग ने नहीं दी थी और इसी पर से उसकी मशीनें जब्त कर ली गई थी।
आइए एक बार फिर देखते हैं जोगी डावर का सच..
आप समझ सकते है कि किस तरह अधिकारियो व ठेकेदार की मिलीभगत से शासन को लाखों रुपए की क्षति पहुंचाई गई। वहीं वन विभाग की लाखों की खनिज संपदा का दोहन किया गया। इसके बावजूद ग्रामीण जनों को आज तक सड़क उपयोग का लाभ नहीं मिल पा रहा है क्योंकि करीब 1 किलोमीटर का पहाड़ी घाट का हिस्सा आज भी आवागमन के लायक नहीं है। ऐसे में मजबूरी में ग्रामीण जन नदी किनारे के दूसरे रास्ते का उपयोग जान जोखिम में डालकर करने को मजबूर हैं।
खास बात यह है कि करीब 6 साल पहले उपरोक्त फर्जी भुगतान ठेकेदार को करा दिए जाने के बाद भी विभाग के वर्तमान अधिकारीगण जानकारी मांगे जाने पर जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों तथा अपने उच्च अधिकारियों को मामला कोर्ट में लंबित होने की बात करके गुमराह करते रहे। वही 5 साल के गारंटी पीरियड के कार्य की राशि भी निकाल कर ठेकेदार अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुके है।
जबकि मामले में जानकारी लेने पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना दमोह के अधिकारी श्री राजपूत का कहना है कि उपरोक्त सड़क के अधूरे कार्य का री टेंडर कराया जा रहा है। लेकिन सवाल यही उठता है कि 6 साल बाद भी अधूरी सड़क का ग्रामीणों को उपयोग नहीं मिलने तथा वन भूमि में अवैध कार्य कराने वाले ठेकेदार को भरपूर भुगतान करने वाले अधिकारियों पर आज तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? इनसे राशि रिकवरी क्यों नहीं की गई ? इनको क्यों बचाया जा रहा है ? और अधूरी सड़क की वजह से हर साल ग्रामीणों को जो परेशानी होती है, मौत होती है उसका जिम्मेदार कौन है ? पिक्चर अभी बाकी है..
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