रिटायर अपर कलेक्टर आनंद कोपरिया कोरोना की जंग हारे
दमोह। जिले में लंबे समय तक पदस्थ रहने के बाद कुछ माह पूर्व ही रिटायर हुए अपार कलेक्टर आनंद कोपरिया अब हमारे बीच नहीं रहे यह खबर जिसने भी सुनी वह सहसा विश्वास नहीं कर सका। कुछ दिन पूर्व ही उनको जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन वह कोरोना की जंग जीत कर घर वापस नहीं लौट सके।
इलाज के दौरान आज उनके निधन की खबर सामने आई है। बताया जा रहा है कि उनकी कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी तथा इलाज के दौरान उनकी हालत में सुधार भी हो रहा था लेकिन आखिरकार उनको नहीं बचाया जा सका। दमोह विधान सभा उपचुनाव के मतदान एक दिन सामने आई इस दुखद खबर ने अधिकारी कर्मचारी वर्ग को भी झकझोर कर रख दिया है। उनकी गिनती जिले में पदस्थ रहते कुशल अधिकारी के तौर पर की जाती थी। ओम शांति शांति शांति
युवा अधिवक्ता मुकेश नगाइच मैं सागर में ली अंतिम सांस..
दमोह के युवा अधिवक्ता मनीष नगाइच के बड़े भाई मुकेश नगाइच भी अब हमारे बीच नहीं रहे उन्होंने सागर में इलाज के दौरान अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि उनकी कोविड-19 पॉजिटिव आई थी। उनका तीन दिन से सागर श्री हॉस्पिटल मे इलाज चल रहा था। जहां देर रात उनकी सांसे थम जाने की दुखद खबर सामने आई है। विनम्र श्रद्धांजलि
गरीब बच्चियों को साइकिल दिलाने वाले पत्रकार प्रवीण श्रीवास्तव भी नहीं रहे..
भोपाल/टीकमगढ़। जब 2003 में उमा भारती की सरकार बनी तो उन्हें पत्रकार मित्र praveen shrivastav ने पत्र लिखा था। प्रवीण भाई टीकमगढ़ के ही रहने वाले थे। गांव से पढ़ने के लिए दूर जाती बच्चियों की तकलीफ को समझते हुए उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती को पत्र लिखा कि इन बच्चियों को सरकार को साइकिल देना चाहिए। उमा जी ने तुरंत praveen shrivastav को इस आईडिया के लिए धन्यवाद दिया और पत्र भी लिखा। इस पत्र को प्रवीण भाई ने काफी सहेज कर रखा था और मेरे जैसे कई पत्रकार मित्रों को दिखाया भी था। उनके आईडिया के बाद प्रदेश भर में सरकार ने पढ़ने जाने वाली बच्चियों को साइकिल देने शुरू किया।
इतने अच्छे विचार रखने वाले praveen shrivastav को पत्रकारिता में काफी संघर्ष करना पड़ा मुफलिसी में उन्होंने कई दिन बिताए और भोपाल के कई प्रमुख अखबारों में नौकरी करने और नौकरी छूटने के बाद उन्होंने शंखनाद नामक पोर्टल शुरू किया था। दुनिया से विदा होने के पहले भी उन्होंने शाम 7: 30 बजे एक पॉजिटिव स्टोरी सेंड की थी। बुंदेलखंड को लेकर वे बहुत ज्यादा पजेसिव थे। बुंदेलखंडी जुबान के साथ वह बहुत आत्मीयता से मिलते थे। बुंदेलखंड के गांवों से आने वाले लोगों के लिए उन्होंने अपने संसाधनों से एक कमरे में रुकने को भोजन की व्यवस्था तक की थी। उनके निधन की खबर ने मुझे झकझोर दिया है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति दे। धर्मेंद्र पैगवार
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