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वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा लेकर उनके गृहस्थ जीवन के पिता भी वैराग्य पथ पर अग्रसर हुए.. जबलपुर नाका जैन मंदिर में दीक्षा के बाद सवाई सिंघई हुकुम चंद धबोली वाले हुए क्षुल्लक हर्षदत्त सागर जी महाराज..

 सवाई सिंघई हुकुम चंद धबोली वालों की हुई छुल्लक दीक्षा’ 

दमोह। वैज्ञानिक संतआचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के ग्रस्त जीवन के पिता श्री सवाई सिंघई हुकुम चंद जी धबौली वालो ने क्षुल्लक दीक्षा ली। दीक्षा के बाद क्षुल्लक हर्षदत्त सागर जी नामकरण किया गया। क्षुल्लक हर्ष दत्त सागर जी मकरोनिया अंकुर कॉलोनी सागर में निवास करते थे उनके पुत्र शरद कुमार, अजय कुमार, पवन कुमार यहां पर अपने पिताश्री को लेकर आये उनकी स्थिति और दादा हुकुम चंद जी की भावना को देखते हुए आचार्य श्री ने दीक्षा देने का निर्णय किया उन्होंने पहले कई बार दीक्षा का निवेदन किया परिवार जन से स्वीकृति मिलने पर दीक्षा संपन्न हुई

ज्ञात हो लगभग 1 वर्ष पूर्व 10 जनवरी को उन्हें लकवा ब्रेन हेमरेज के कारण लकवा लग गया था। तब भी दीक्षा का प्रसंग सागर में आया था लेकिन निमित्त तो दमोह नगर का था ।आज उनकी छलक दीक्षा संपन्न हुई । दीक्षा के बाद पिच्छी प्रदान करने का सौभाग्य उन्हीं के ग्रस्त जीवन के पुत्र शरद कुमार ,अजय कुमार, पवन कुमार बेटी सुधा एवं सविता दीदी के साथ जबलपुर नाका  दमोह के  डॉ आर के जैन ,डॉ जे के जैन, संजय जैन, मनोज जैन आदि को प्राप्त हुआ। कमंडल प्रदान करने का सौभाग्य श्री हर्ष दत्त सागर जी महाराज के ग्रस्त जीवन की पत्नी श्रीमती सुहाग रानी पुत्र वधु अनीता जैन ,मणी जैन एवं महिला मंडल ,बालिका मंडल को सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिनवाणी प्रदान करने का सौभाग्य नीता फट्टा पथरिया एवं जैन समाज जबलपुर नाका दमॊह को प्राप्त हुआ ।

 दीक्षार्थी श्री हुकुमचंद जी ग्राम धबोली तहसील बंडा जिला सागर के  मूल निवासी थे । उनके 6 पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं हुकुम चंद जी 40 वर्ष तक धबौली जैन समाज के अध्यक्ष रहे ,20 वर्ष तक सरपंच रहे । आपके पिता श्री ने धवैली एवं नैनागिरि में मंदिर बनना कर दो बार पंच कल्याणक प्रतिष्ठा के साथ गजरथ चलवायेऔर जिससे सवाई सिंघई की उपाधि प्राप्त हुई । आश्चर्य की बात यह रही कि पिता ने ही आपने तृतीय पुत्र अभय कुमार जो वर्तमान में आचार्य निर्भय सागर जी हैं उन्हीं के करकमलों से दीक्षा ग्रहण की।आज यह एक अनोखा दृश्य था जब एक पुत्र आचार्य बनकर अपने पिता को दीक्षा दे रहा था । जिसे देखकर सारी जनता अभिभूत होकर हर्षित हो रही थी।

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