केंद्रीय मंत्री के क्षेत्र की अनदेखी किसके इशारे पर ?
मोदी सरकार के पावरफुल मंत्रियों में से एक केंद्रीय पर्यटन विकास मंत्री श्री प्रहलाद पटेल के निर्वाचन क्षेत्र दमोह क्षेत्र को अपेक्षित विकास सुविधाएं देने के बजाय यहां के हितों की अन देखी करने की हिम्मत कतिपय अधिकारी कैसे रहे हैं ? क्या कोई भी निर्णय लेने के पहले उनको यह याद नही रहता कि दमोह क्षेत्र की अनदेखी और उपेक्षा को केंद्रीय मंत्री श्री पटेल की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा ? दमोह क्षेत्र की किसी भी पुरानीं उपलब्धि या सुविधा के छिन जाने का दोषारोपण भी श्री पटेल के खाते में जाएगा..?
हम बात कर रहे हैं दमोह जिले में करीब 50 साल से संचालित इनकम टेक्स विभाग के उस ऑफिस की जिसे 1971 में दमोह से निर्वाचित हुए सांसद शंकर गिरी ने अपने पिता तत्कालीन राष्ट्रपति बीवी गिरी के मार्फत दमोह के व्यापारियों को सौगात के रूप में दिलवाया था। करीब 50 वर्ष पुराने आयकर विभाग के इस कार्यालय को आखिर किस के इशारे पर दमोह से नरसिंहपुर में शिफ्ट करने या मर्ज करने का निर्णय लिया गया ? यह निर्णय लेने वाले अधिकारियों को इस बात का जरा भी ज्ञान नहीं था कि दमोह पर्यटन राज्य मंत्री प्रह्लाद पटेल का निर्वाचन क्षेत्र है। यहां के लोग जब 50 साल पहले इनकम टैक्स ऑफिस की सुविधा प्राप्त कर चुके थे तो इसे यहा से कैसे चले जानें देंगे ? ऐसा तो नहीं केंद्रीय मंत्री के कुछ नजदीकी लोगों को खुश करने के लिए उनके संसदीय क्षेत्र से यह कार्यालय उनके गृह क्षेत्र जिला नरसिंहपुर ले जाने का निर्णय कराया गया हो ?
दमोह इनकम टेक्स ऑफिस को नरसिंहपुर शिफ्ट किए जाने की खबर लगने के बाद यहां के व्यापारी वकीलों के साथ आम नागरिकों ने जिस तरह से हितों की उपेक्षा का यह मुद्दा जोर शोर से उठाया.. उसका नतीजा यह रहा कि दमोह सांसद और केंद्रीय मंत्री श्री प्रहलाद पटेल को केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री श्री अनुराग ठाकुर का मामले में ध्यान आकर्षित करने के लिए पत्र लिखना पड़ा। इसके बाद यह कहा जा सकता है कि अब दमोह का आयकर ऑफिस कहीं नहीं जाएगा, वह यही पर रहेगा। लेकिन फिर भी सवाल यही उठता है कि आखिर दमोह के हितों की अनदेखी किसके इशारे पर हो रही है। पिछले दिनों इसी तरह हाउसिंग बोर्ड के ऑफिस को भी दमोह से छतरपुर शिफ्ट करने का आदेश जारी कर दिया गया था। जिसे भी बाद में केंद्रीय मंत्री श्री पटेल के पत्र और हस्तक्षेप के बाद वापिस दमोह में यथावत रखने का आदेश देना पड़ा था।
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के निर्वाचन क्षेत्र दमोह की उपेक्षा और अनदेखी के यह दोनो उदाहरण अकेले नहीं है है। दमोह को रेल सुविधाओं के मामले में भी इसी तरह की अपेक्षा अनदेखी का शिकार होना पड़ रहा है। लगातार मांग के बाद भी आज तक दक्षिण भारत और नागपुर के लिए कोई रेल सुविधा जबलपुर मंडल ने उपलब्ध नहीं कराई है। वही रतलाम मंडल ने शिप्रा एक्सप्रेस को रेल मंत्री के आदेश के बाद भी डेली करना जरूरी नही समझा है। जबलपुर से दमोह होते हुए पन्ना खजुराहो रेल लाइन और दमोह कुंडलपुर रेल लाइन सर्वे मंजूरी के बाद भी आगे नही बढ़ सकी। ऐसे अनेक उदाहरण है जो यह बताते है कि दमोह सांसद के केंद्रीय मंत्री बन जाने के बाद भी उनके क्षेत्र की उपेक्षा की जा रही है। भारत तिब्बत सीमा पुलिस ट्रेनिंग सेंटर को शुरू किए जाने का मामला हो या गैसाबाद के पास कमलनाथ सरकार में प्रस्तावित सीमेंट फैक्ट्री का या फिर मायसेम सीमेंट फैक्ट्री में स्थानीय युवाओ को रोजगार देने का।
इन सभी ओर संबंधित को शीघ्र ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह सभी मामले केंद्रीय मंत्री श्री पटेल के निर्वाचन क्षेत्र से सीधा संबंध रखते हैं। वही श्री पटेल को भी यह समझना चाहिए कि उनके मंत्री रहते उनके संसदीय क्षेत्र के लोगो की अपेक्षाए, विकास सुविधाओं तथा उपलब्धियों की आस कई गुना अधिक बढ़ गई है। जिस पर ध्यान देना और मेडिकल इंजीनियरिंग कॉलेज से लेकर फैक्ट्री उद्योग लगवाना और बेरोजगारों को रोजगार के अवसर दिलवाना भी उनकी जिम्मेदारी हो गई है।
बता दे कि दमोह वासी क्षेत्र के विकास में दिए गए जनप्रतिनिधियो के छोटे से योगदान को भी कभी नहीं भूलते हैं। 50 साल पहले तत्कालीन सांसद शंकर गिरी द्वारा तब के कांग्रेस नेता प्रभु नारायण टण्डन की पहल पर दमोह को इनकम टेक्स ऑफिस दिलाने तथा ऑफिस के लिए बाबू विजय कुमार मलैया द्वारा सबसे पहले जगह उपलब्ध कराए जाने जैसी चर्चाए करने से आज भी लोग करने से नही चूक रहे है। पिक्चर अभी बाकी है.. अटल राजेन्द्र जैन
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श्रेष्ठ आकलन भाईसाब
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