27 प्रतिशत आरक्षण शीघ्र लागू करने ज्ञापन सौंपा
जबकि ओबीसी के कई सामाजिक व जातीय संगठनों ने मुख्यमंत्री, विधि मंत्री, पिछड़ा वर्ग विभाग मंत्री तथा प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग आदि के समक्ष में उपस्थित होकर निवेदन करते हुए तथा ज्ञापन प्रस्तुत कर समय पर जवाब पेश करने की मांग की जाती रही है। उच्च न्यायालय द्वारा भी हर सुनवाई तारीख पर शासन को जवाब पेश करने के निर्देश दिए गए हैं। इन निर्देशों के बावजूद अधिकारियों व महाधिवक्ता व उनके कार्यालय के अन्य जिम्मेदार पदाधिकारियों की जानबूझकर उपेक्षा के चलते 10 याचिकाओं में जवाब अभी भी पेश नहीं हो सका। जिस कारण दिनांक 28 जनवरी को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पीएससी की चयन परीक्षा में ओबीसी को 27 प्रतिषत आरक्षण के बजाय 14 प्रतिषत आरक्षण देने का स्थगन आदेश जारी कर दिया है तथा सुनवाई दिनांक 31 जनवरी 20 को यह आदेश दिए कि पीएससी की चयन कार्यवाही जारी रखी जाए। किन्तु न्यायालय के आदेश बिना परिणाम घोषित न करें। इस प्रकार इस बढ़ा हुआ आरक्षण ओबीसी को मिलने में न्यायालयीन आदेश की बाधा खड़ी हो गई है। जिसके, जिम्मेदार संबंधित अधिकारी एवं महाधिवक्ता एवं उनका कार्यालय है।
यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि पूर्व में मेडिकल प्रवेश परीक्षा से संबंधित प्रकरण में भी समय पर जवाब तथा बहस न होने पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश दे दिया गया था जिस कारण बड़े हुए आरक्षण का लाभ ओबीसी के छात्रों को नहीं मिल पाया। इस याचिका में भी अभी तक जवाब पेश नहीं हुआ और स्थगन आदेश लागू है यह कि मुख्यमंत्री ने ओबीसी के प्रतिनिधिमंडल को बताया था कि अधिकारियों व महाधिवक्ता को जवाब पेश करने हेतु चर्चा हो चुकी है। जवाब पेश होगा किंतु उनके निर्देशों का भी पालन नहीं किया गया जिससे पिछड़ा समाज में रोस व्याप्त है।
पिछड़ा वर्ग संयुक्त संघर्ष मोर्चा के संरक्षक बहादुर सिंह लोधी ने बताया कि उच्च न्यायालय व अन्य सभी न्यायालयों में शासन का पक्ष सक्षम तरीके से समय पर पेश करने के अनेकों आदेश निर्देश शासन द्वारा जारी किये गए हैं।अधिकारियों को इस बाबत प्रशिक्षण भी दिया जाता है। किंतु ओबीसी आरक्षण के विरुद्ध प्रस्तुत इन याचिकाओं में किसी भी नियम निर्देश या मुख्यमंत्री अथवा मंत्री के निर्देशों का पालन नहीं किया गया। मामला जानबूझकर उलझाया गया विलंबित किया गया जिससे जनता व ओबीसी की 52 प्रतिशत आबादी के बीच यह संदेश गया कि सरकार जानबूझकर ठीक पैरवी नहीं कर रही जिससे आरक्षण रद्द हो जाए। आमजन व ओबीसी के बीच शासन की छवि भी धूमिल हुई है। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि 12 प्रतिषत सवर्णों को 10 प्रतिषत संविधान संशोधन कर दिए गए आरक्षण के विरुद्ध प्रस्तुत याचिका का जवाब पेश करने व सक्षम तरीके से शासन का पक्ष रखने की कार्यवाही इन्हीं अधिकारियों व महाधिवक्ता एवं उनके कार्यालय द्वारा समय पर की जा रही है। इसी कारण सवर्णों के बढ़े हुए 10 प्रतिषत आरक्षण पर कोई स्थगन माननीय उच्च न्यायालय द्वारा नहीं दिया गया ओबीसी आरक्षण के विरुद्ध याचिकाओं में समय जवाब पेश न करने व सक्षम पैरवी न करने के लिए जिम्मेदार शासकीय अधिकारी व महाधिवक्ता तथा उनके कार्यालय के संबंधित अधिवक्ताओं के विरुद्ध जांच कर उनकी जिम्मेदारी तय करते हुए ठोस दंडात्मक कार्यवाही शीघ्र की जाए। जिससे इन याचिकाओं में आगे और कोई गफलत न हो सके तथा शासन ने जिस साफ मंशा से ओबीसी को आरक्षण दिया है वह पूरी तरह लागू हो तथा इसमे व्यवधान पैदा करने एवं मुख्यमंत्री के आदेश की अवहेलना करने वाले सबक सीख सकें। आशा है इस संबंध में शीघ्र उचित कार्यवाही होगी।
दमोह। पिछड़ा वर्ग संयुक्त संघर्ष मोर्चा द्वारा मप्र में 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ के नाम दमोह कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया। मोर्चा संयोजक बैजनाथ पटैल ने बताया कि विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस पार्टी द्वारा जारी किए गए घोषणा पत्र में अन्य जनहितकारी नीतियों के साथ ही ओबीसी को महाजन आयोग की अनुशंसा अनुसार 27 प्रतिषत आरक्षण देने की घोषणा भी की गई थी। जिससे अधिसंख्य ओबीसी वर्ग कांग्रेस पार्टी से जुड़ा। पार्टी की सरकार बनी। मुख्यमंत्रीजी ने वायदे के अनुसार 27 प्रतिषत आरक्षण लागू करवाया, आरक्षण के विरुद्ध मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में 11 याचिकाएं प्रस्तुत हुईं। 6 माह से अधिक समय बीतने के उपरांत भी इन याचिकाओं में से अब तक केवल एक याचिका का जवाब शासन द्वारा पेश किया गया है।
जबकि ओबीसी के कई सामाजिक व जातीय संगठनों ने मुख्यमंत्री, विधि मंत्री, पिछड़ा वर्ग विभाग मंत्री तथा प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग आदि के समक्ष में उपस्थित होकर निवेदन करते हुए तथा ज्ञापन प्रस्तुत कर समय पर जवाब पेश करने की मांग की जाती रही है। उच्च न्यायालय द्वारा भी हर सुनवाई तारीख पर शासन को जवाब पेश करने के निर्देश दिए गए हैं। इन निर्देशों के बावजूद अधिकारियों व महाधिवक्ता व उनके कार्यालय के अन्य जिम्मेदार पदाधिकारियों की जानबूझकर उपेक्षा के चलते 10 याचिकाओं में जवाब अभी भी पेश नहीं हो सका। जिस कारण दिनांक 28 जनवरी को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पीएससी की चयन परीक्षा में ओबीसी को 27 प्रतिषत आरक्षण के बजाय 14 प्रतिषत आरक्षण देने का स्थगन आदेश जारी कर दिया है तथा सुनवाई दिनांक 31 जनवरी 20 को यह आदेश दिए कि पीएससी की चयन कार्यवाही जारी रखी जाए। किन्तु न्यायालय के आदेश बिना परिणाम घोषित न करें। इस प्रकार इस बढ़ा हुआ आरक्षण ओबीसी को मिलने में न्यायालयीन आदेश की बाधा खड़ी हो गई है। जिसके, जिम्मेदार संबंधित अधिकारी एवं महाधिवक्ता एवं उनका कार्यालय है।
यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि पूर्व में मेडिकल प्रवेश परीक्षा से संबंधित प्रकरण में भी समय पर जवाब तथा बहस न होने पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश दे दिया गया था जिस कारण बड़े हुए आरक्षण का लाभ ओबीसी के छात्रों को नहीं मिल पाया। इस याचिका में भी अभी तक जवाब पेश नहीं हुआ और स्थगन आदेश लागू है यह कि मुख्यमंत्री ने ओबीसी के प्रतिनिधिमंडल को बताया था कि अधिकारियों व महाधिवक्ता को जवाब पेश करने हेतु चर्चा हो चुकी है। जवाब पेश होगा किंतु उनके निर्देशों का भी पालन नहीं किया गया जिससे पिछड़ा समाज में रोस व्याप्त है।
पिछड़ा वर्ग संयुक्त संघर्ष मोर्चा के संरक्षक बहादुर सिंह लोधी ने बताया कि उच्च न्यायालय व अन्य सभी न्यायालयों में शासन का पक्ष सक्षम तरीके से समय पर पेश करने के अनेकों आदेश निर्देश शासन द्वारा जारी किये गए हैं।अधिकारियों को इस बाबत प्रशिक्षण भी दिया जाता है। किंतु ओबीसी आरक्षण के विरुद्ध प्रस्तुत इन याचिकाओं में किसी भी नियम निर्देश या मुख्यमंत्री अथवा मंत्री के निर्देशों का पालन नहीं किया गया। मामला जानबूझकर उलझाया गया विलंबित किया गया जिससे जनता व ओबीसी की 52 प्रतिशत आबादी के बीच यह संदेश गया कि सरकार जानबूझकर ठीक पैरवी नहीं कर रही जिससे आरक्षण रद्द हो जाए। आमजन व ओबीसी के बीच शासन की छवि भी धूमिल हुई है। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि 12 प्रतिषत सवर्णों को 10 प्रतिषत संविधान संशोधन कर दिए गए आरक्षण के विरुद्ध प्रस्तुत याचिका का जवाब पेश करने व सक्षम तरीके से शासन का पक्ष रखने की कार्यवाही इन्हीं अधिकारियों व महाधिवक्ता एवं उनके कार्यालय द्वारा समय पर की जा रही है। इसी कारण सवर्णों के बढ़े हुए 10 प्रतिषत आरक्षण पर कोई स्थगन माननीय उच्च न्यायालय द्वारा नहीं दिया गया ओबीसी आरक्षण के विरुद्ध याचिकाओं में समय जवाब पेश न करने व सक्षम पैरवी न करने के लिए जिम्मेदार शासकीय अधिकारी व महाधिवक्ता तथा उनके कार्यालय के संबंधित अधिवक्ताओं के विरुद्ध जांच कर उनकी जिम्मेदारी तय करते हुए ठोस दंडात्मक कार्यवाही शीघ्र की जाए। जिससे इन याचिकाओं में आगे और कोई गफलत न हो सके तथा शासन ने जिस साफ मंशा से ओबीसी को आरक्षण दिया है वह पूरी तरह लागू हो तथा इसमे व्यवधान पैदा करने एवं मुख्यमंत्री के आदेश की अवहेलना करने वाले सबक सीख सकें। आशा है इस संबंध में शीघ्र उचित कार्यवाही होगी।
ज्ञापन सौंपते समय प्रमुख रूप से उपस्थित रहे बहादुर सिंह लोधी, बैजनाथ पटैल, सुखनंदन पटैल, महेश पटैल, हरिश्चंद्र पटैल, वैभव पटैल, हर्ष पटैल, कृष्णा पटैल, जगदीश पटैल, रामसेवक लोधी, मोहन पटैल, हाकम सिंह सहित अधिक संख्या में पिछड़ा वर्ग के लोगों की उपस्थिति रही।
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