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लोकसभा में गूंजा आजादी की प्रथम क्रांति में बुंदेलखंड और दमोह जिले के योगदान का इतिहास.. 1842 क्रांति शोध संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने भारत को आजादी दिलाने वाले आदिवासी जनों की दिलाई याद..

लोकसभा में गूंजा आजादी की प्रथम क्रांति का इतिहास
  अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की क्रांति का प्रथम बिगुल झांसी में 1857 के पहले दमोह जिले के हिंडोरिया के किशोर सिंह ने 1842 में बजाया था। वही अमर शहीद भगत सिंह को झांसी पर चढ़ाए जाने के पहले नरसिंहगढ़ के पास फसिया नाले पर राव रघुनाथ करमरकर परिवार अनेक लोगों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। इतिहास में दफन आजादी के बलिदान को दमोह सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने लोकसभा में रखकर विरोधियों की जुवान बन्द कर दी वही बुंदेलखंड वासियों का सिर गर्व से ऊंचा करके मंत्रमुग्ध कर दिया। लोकसभा अध्यक्ष तक को मंत्र मुक्त कर देने वाला हमारे सांसद प्रह्लाद पटेल का यह संबोधन निश्चित तौर पर हम सभी के लिए भी बहुत बहुत गौरवान्वित करने वाला है। शानदार और जानदार संबोधन के लिए सांसद प्रह्लाद पटेल को अटल News24 परिवार की ओर से बहुत-बहुत बधाई

1857 नही, 1842 क्रांति है प्रथम स्वतंत्रता संग्राम- लोकसभा में उद्बोधन के दौरान संस्कृति और पर्यटन मंत्री श्री प्रहलाद पटेल दमोह सांसद द्वारा सदन के पटल पर उद्बोधन किया कि, " . ..भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1842 में दमोह से शुरु हुआ था उक्त स्वतंत्रता संग्राम राजा किशोर सिंह के नेतृत्व में लड़ा गया। राजा किशोर सिंह का शरीर किसी को भी जीवित या मृत प्राप्त नहीं हुआ.. . अंग्रजो को दमोह में दो बार हराया .. . आपके माध्यम से सदन और देश को कहना चाहता हूं की संस्कृति और इतिहास का पुनः लेखन ना हो कम से कम पुनः निरीक्षण हो.. . "
विदित रहे, मैं विगत 2005 से 1842 व 1857 क्रांति के मुद्दे पर कार्य कर जनता के समक्ष रख रहा हूं। 1842 की क्रांति राजा हिरदेशाह लोधी (हीरापुर नरसिंहपुर) के नेतृत्व में लड़ी गई थी। इस क्रांति की शुरुआत बुंदेला राजाओं द्वारा की गयी तत कारण से यह 'बुंदेला विद्रोह' के नाम से चर्चित हुई। इस क्रांति का केंद्र मध्यप्रदेश का जबलपुर था। 1842 क्रांति मध्य प्रदेश का राष्ट्रीय गौरव है। 1982 में प्रोफेसर जेपी मिश्र जो कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. डीपी मिश्र के भतीजे हैं, उनके रिसर्च पेपर बुंदेला विद्रोह के नाम से प्रकाशित हुए। तदुपरांत 1842 की क्रांति ब्राह्मणों की लेखनी से राष्ट्र के सामने आयी। उक्त क्रांति की शुरुआत तालबेहट ललितपुर उत्तर प्रदेश से हुई थी तथा इस क्रांति में आदिवासी समुदाय के बहुत से राजा एवं मुस्लिम समुदाय से भोपाल मध्यप्रदेश के नवाब इत्यादि जाँबाज़ोँ ने लड़े थे। 
जिन राजा किशोर सिंह का जिक्र आदरणीय प्रहलाद पटेल जी कर रहे हैं, मैं उनका पड़प्रपौत्र (वंशज) हूं। उनके पिता राजा जोरावर सिंह लोधी 1842 की क्रांति में हिरदेशाह लोधी जी के साथ लड़े थे। वे 1842 क्रांति में संगठक की भूमिका में थे। किशोर सिंह ने संपूर्ण बुंदेलखंड क्षेत्र में 1842 की क्रांति की कमान हीरापुर के राजा हिरदेशाह लोधी के पुत्र मेहरबान सिंह के साथ मिलकर संभाली थी। राजा किशोर सिंह लोधी (हिंडोरिया दमोह) उस अपराजेय ताकत का नाम था जिसने 1842 व 1857 की क्रांति लड़ी। उन्होने 1857 की क्रांति में दमोह जिले को साढ़े 6 महीने आजाद रखा और इस दौरान पन्ना राज्य की सेना को, जोकि अंग्रेजो से मिली हुई थी उसको दो बार हराया व दमोह कोतवाली व कुम्हारी थाने से दमोह पर अपना शासन कायम रखा।
 बुंदेलखंड के इस शेर के सिर पर अंग्रजो द्वारा रू 1000/- का इनाम घोषित था। राजा की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारी जनरल व्हिटलाक भी पन्ना, जबलपुर, मद्रास, मुंबई की सेना कंपनी साथ में होने के बावजूद भी राजा किशोर सिंह लोधी से लड़ने की हिम्मत नहीं करता था। पूरे भारत में दमोह ही एक ऐसा जिला है जो स्व.किशोर सिंह ने अंग्रेजों से संपूर्ण रूप से साढे 6 महीने आजाद रखा। 1857 की क्रांति में अखंड भारत में सबसे अंतिम समय तक लड़ने वाले क्रांतिकारी राजा किशोर सिंह ही हैं। 
1842 नेतृत्वकर्ता राजा हिरदेशाह लोधी व उनके भाइयों के सिर पर अंग्रेजों ने 19,000 का इनाम रखा। अंग्रेज भयवश राजा हिरदेशाह को "नर्मदा टाइगर" व उनके पुत्र मेहरबान सिंह को "जंगी राजा" के नाम से सम्बोधित करते थे। 1842 क्रांति 3 साल 4 महिने चली,यह भारत में  सर्वाधिक लंबे समय चलने वाला विद्रोह था। अंग्रेज जब यह समझ गए कि अब भारत को स्वतंत्र करना पड़ेगा तब स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में घटी विस्मित करने वाली एकमात्र घटना। भारत का तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड एलनबरो चुनारगढ़ (मिर्जापुर, उ.प्र.) पहुंचा जहां पर वह राजा हिरदेशाह लोधी, उनके परिवार व सहयोगियो से मिला जहाँ उनको कैद रखा गया था। मिलने के उपरांत कर्नल स्लीमन की सिफारिश पर गवर्नर जनरल ने राजा हिरदेशाह लोधी को भारत में शांति व्यवस्था कायम रखने की शर्त पर अपने हस्ताक्षर से सशर्त रिहा किया था। इसी विद्रोह के फल स्वरुप 1854 में भारत का पुलिस एक्ट प्रभाव में आया।
कहानी काफी लंबी है इस विषय पर मैं आप लोगों के आशीर्वाद व सहयोग थे निरंतर काम कर रहा हूं। कई वर्षों के अध्ययन उपरांत 2005 में प्रथम बार मैंने 1842 व 1857 क्रांति व हीरापुर के राजा हिरदेशाह लोधी व हिंडोरिया के राजा किशोर सिंह का विषय जनता के समक्ष रखा था। 1842 क्रांति में जो परिवार लड़े उस में प्रमुख रूप से हीरापुर, हिंडोरिया, ढिलवार, अभाना, बालाकोट, तालबेहट, खिमलासा, भोपाल आदि सैकड़ों गांव व राजपूत, बुंदेला, लोधी, आदिवासी, पटेल व मुस्लिम  समाज के लोग हैं।
नर्मदा टाइगर राजा हिरदेशाह लोधी व राजा किशोर सिंह लोधी का वंशज होने के नाते मैं वैभव सिंह राजपरिवार हीरापुर व राजपरिवार हिंडोरिया की ओर से दमोह सांसद व संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री प्रहलाद पटेल जी को सादर धन्यवाद प्रेषित करता हूं कि उन्होंने लोकसभा में चर्चा के दौरान मध्य प्रदेश का राष्ट्रीय गौरव 1842 की क्रांति का विषय देश के सामने रखा व बुंदेलखंड के असली शेर राजा किशोर सिंह लोधी की शहादत को राष्ट्रीय पटल पर रखा।
भारत को आजादी दिलाने वाले मेरे आदिवासी-

भारत देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1842 क्रांति व द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम 1857 क्रांति में आदिवासियों की प्रमुख भूमिका थी। अंग्रेजों द्वारा इतिहास में “बुंदेला रिवोल्ट“ के नाम से दर्ज इस क्रांति में बुंदेला, राजपूत, लोधी, गौंड़ व राजगौंड़ौ ने 3 साल 4 महीने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। 1854 में भारत का पुलिस एक्ट, 1842 की क्रांति की देन है। 1842 में बुंदेलखंड व महाकौशल क्षेत्र के आदिवासी अपनी समस्त शक्ति व ताकत के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध हीरापुर नरसिंहपुर के राजा हिरदेशाह लोधी के नेतृत्व में लड़े व 18 महीने अंग्रेजों को नरसिंहपुर में घुसने नहीं दिया। 1842 व 1857 की क्रांति में राजा किशोर सिंह लोधी हिंडोरिया दमोह के नेतृत्व में लड़े थे। राजपूत, बुंदेला, आदिवासी (गौड़, राजगौड़) व मुस्लिम वर्ग आदिकाल से मेरे पूर्वजों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहा हैं और देश की आजादी की लड़ाईयों में कंधे से कंधा मिलाकर तन मन धन की आहुतियां दी।
सोनभद्र उत्तर प्रदेश की घटना जिसमें 10 निर्दोष आदिवासियों को मौत के घाट उतारा गया बहुत चिंताजनक है। यह वह वर्ग है जो शिक्षित नहीं है परंतु इस वर्ग के पूर्वजों का देश की आजादी में सबसे बड़ा योगदान है जिस को नकारा नहीं जा सकता। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इस बात का ध्यान समस्त सरकारों को रखना चाहिए। केंद्र एवं राज्य सरकारों को आदिवासियों के जल जंगल जमीन के अधिकार भी सुरक्षित करना चाहिये। आज आदिवासियों की जमीनों पर दूसरे वर्गों के लोग औने पौने दाम पर कब्जा कर रहे यह चिंतनीय है। गोंडवाना का स्वर्णिम इतिहास रहा है। आदिवासियों के बलिदान के कारण आज हम भारतवासी आजादी का सुख भोग रहे हैं।
 मैं राजपरिवार हीरापुर एवं हिंडोरिया की ओर से संपूर्ण बुंदेलखंड व महाकौशल क्षेत्र के आदिवासी, गौड़, राजगौड़  परिवारों के पूर्वजों को सादर चरण स्पर्श करते हुए कोटिशः नमन प्रेषित करता हूं। महारानी दुर्गावती, राजा शंकरशाह गौड़ , रघुनाथशाह गौड़ के चरणों में नमन। म.प्र. के मुख्यमंत्री माननीय कमलनाथ जी को आदिवासी दिवस पर राजकीय अवकाश घोषित करने हेतु सादर धन्यवाद। वैभव सिंह, अधिवक्ता, म.प्र. हाईकोर्ट राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय 1842 क्रांति शोध संस्थान व प्रचार समिति 

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