बकायन में कलाकारों की प्रस्तुति ने शमां बांधा-
सभा की चतुर्थ प्रस्तुति में, सन् 2006 में बकायन के मंच को अभी तक याद रहीं। लखनऊ की सुश्री मनीषा मिश्रा का दमदार कथक इस बार पुनः मंच को स्मरणीय बना गया। उनके साथ तबले पर पिता पं. रविनाथ मिश्र तथा पुत्र आराध्य प्रवीण ने अज-रज भरी संगति की एवं उनके पति प्रवीण कष्यप ने सह गायन किया। सभा की अंतिम प्रस्तुति ने वाकई ‘षिखर’ समापन किया। ग्वालियर, आगरा तथा जयपुर घराने को साक्षात उपस्थित करते पद्मश्री पं. उल्हास कषालकर का गायन सुधी श्रोताओं को एक अलग ही धरात पर ले गया।
दमोह। बकायन में आयोजित देष के सबसे प्राचीन शास्त्रीय संगीत समारोह का आगाज बड़ी धूमधाम से हुआ। दोपहर की प्रथम सभा में गूँजे शास्त्रीय स्वरों की झनकार कानों से उतरी भी नहीं थी कि सायं 8 बजे से ‘‘निषा-रागिनी’’ का, देष के शीर्ष एवं दिग्गज कलाकारों का क्रमषः मंच पर पर्दापण होता चला गया। सभा का प्रथम पुष्प खिला, पुणे की ख्यात कथक नृत्यांगना सुश्री अस्मिता ठाकुर की प्रस्तुति से, कथक की दोनों खासियतों ‘नृŸा’ एवं भावाभिनय का अत्यंत सटीक एवं सुंदर समन्वय होता हुआ दिख रहा था।इस प्रभावी प्रस्तुति के बाद, दूसरे क्रम में पधारे जयतीर्थ मेवुंडी (हुबली धारवाड़) ने अत्यंत दमदार तथा ओजस्वी गायन, फरार्टदार तान क्रिया का प्रभाव दर्षकों पर छा रहा था। तबले पर बनारस के पुंडलीक तथा हारमोनियम पर भोपाल के जमीर खाँ ने उतनी ही सूझबूझ की संगति की। तीसरे क्रम में पद्मभूषण पं. बुधादित्य मुखर्जी तो मानो साक्षात् इमदादखानी परंपरा को ही उड़ेलते नजर आए, ‘‘ऐसा सितार वादन हमने कभी नहीं सुना’’, यही वाक्य माहौल में गूँज रहा था। उनके साथ तबले पर कोलकाता के सोमेन ने संगति की। इसके पूर्व 8 मिनिट की कथक प्रस्तुति हुई जिसमें बकायन की साक्षी तथा राखी पटेल इन दो ‘‘एकलव्य’’ सम बहनों ने, जिन्हें किसी गुरू का मार्गदर्षन तो नहीं मिला पर अपनी स्वयं की प्रतिभा को उन्होंने बखूबी दर्षाया।
सभा की चतुर्थ प्रस्तुति में, सन् 2006 में बकायन के मंच को अभी तक याद रहीं। लखनऊ की सुश्री मनीषा मिश्रा का दमदार कथक इस बार पुनः मंच को स्मरणीय बना गया। उनके साथ तबले पर पिता पं. रविनाथ मिश्र तथा पुत्र आराध्य प्रवीण ने अज-रज भरी संगति की एवं उनके पति प्रवीण कष्यप ने सह गायन किया। सभा की अंतिम प्रस्तुति ने वाकई ‘षिखर’ समापन किया। ग्वालियर, आगरा तथा जयपुर घराने को साक्षात उपस्थित करते पद्मश्री पं. उल्हास कषालकर का गायन सुधी श्रोताओं को एक अलग ही धरात पर ले गया।
सामने बैठे डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्र विष्वविद्यालय के लगभग 30-35 छात्र तो साक्षात् संगीत महर्षि से दीक्षा ग्रहण कर रहे थे। समारोह के 125 वें वर्ष को अत्यंत सार्थक करता ‘‘निषा-रागिनी’’ का यह समापन भूल पाना असंभव है। उनके साथ तबले पर मयंक बेड़ेकर (गोआ) तथा संवादिनी (हारमोनियम) पर पुणे के अभिषेक षिनकर ने संगति की। संजय पलनीटकर की रिपोर्ट
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