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कल्पद्रुम महामंडल विधान का हवन पूजन से समापन.. श्रीजी की शोभायात्रा निकली, धर्म कार्य धन से नहीं श्रद्धा से होते हैं-आचार्यश्री उदार सागर

कल्पद्रुम विधान समापन पर श्रीजी की शोभायात्रा
दमोहधर्म कार्य करने के लिए धन की नहीं श्रद्धा की आवश्यकता होती है श्रद्धा के साथ शुरू किए गए धर्म कार्य में धन की कमी नहीं आती तथा तथा बड़े-बड़े विधान पूजन जिनालय निर्माण जैसे कार्य सहज ही संपन्न हो जाते हैं। 
                                   
यह मंगल उदगार आचार्य श्री उदार सागर जी महाराज ने श्री 1008 कल्पद्रुम महामंडल विधान की समापन बेला में अभिव्यक्त किए। नगर के श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर जी में 2 से 13 दिसंबर तक आयोजित श्री 1008 कल्पद्रुम महामंडल विधान का गुरुवार दोपहर श्रीजी की शोभायात्रा के साथ भव्य मंगल समापन हो गया।

 इस अवसर पर प्रातः बेला में श्रीजी के पूजन अभिषेक उपरांत भक्ति भाव के साथ मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ का पूजन अर्चन करते हुए पंचकल्याणक के अर्थ चढ़ाए गए। आज विधान के महापात्रो ने समवशरण से नीचे उतरकर पूजन किया। वहीं अनेक दूसरे श्रावक जनो को समवशरण में बैठकर पूजन करने का सौभाग्य अर्जित हुआ। 
बाल ब्रह्मचारी आशीष जैन पुण्यांश एवं पंडित सुरेश शास्त्री के निर्देशन में तथा भोपाल की विशाल संगीत पार्टी की स्वर लहरियों के बीच भक्ति भाव के साथ श्री कल्पद्रुम महामंडल विधान की अंतिम जयमाला पूजन संपन्न की गई इसके बाद विश्व शांति हेतु हवन पूजन किया गया।

आचार्य श्री एवं मुनिश्री ने दिया मंगल आशीर्वाद- इस मौके पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए  आचार्य श्री उदार सागर महाराज कहा कि विधान पूजन में क्वांटिटी नहीं क्वालिटी देखना चाहिए। धार्मिक अनुष्ठानों में भीड़ से अधिक भावना का महत्व होता है। जिन लोगों के भाव विधान पूजन करके धर्म मार्ग को प्रशस्त करने के होते हैं वह ठंड गर्मी बरसात जैसे मौसम के हालात की परवाह नहीं करते। जैसा कि आप सभी ने यहां पर किया है। 
आपने कल्पद्रुम महामंडल विधान की महिमा का बखान करते हुए कहा कि जिन भी लोगों ने भावनाओं के साथ विधान पूजन किया है उनकी भावनाएं अवश्य पूरी होंगी। इसके पूर्व धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री उपशान्त सागर महाराज ने विधान में सम्मिलित होकर धर्म लाभ अर्जित करने वालों को बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
श्रीजी की शोभायात्रा की जगह जगह अगवानी- 
हवन पूजन के बाद जैन धर्मशाला से चांदी के भव्य रथ में श्री जी को विराजमान करके शोभा यात्रा निकाली गई। जो सिटी नल से प्रारंभ होकर पुराना थाना, टॉकीज तिराहा, सराफा, घंटाघर, नया बाजार धगट चौराहा होते हुए चौधरी मन्दिर, बड़ा जैन मन्दिर, की परिक्रमा करते हुए सिटी नल मन्दिर से श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मंदिर पहुंचकर संपन्न हुई। 
शोभा यात्रा में सबसे आगे दिव्य घोष के साथ धर्म ध्वजा लिए अश्व सवार चल रहे थे। उसके बाद आचार्य श्री उदार सागर, मुनि श्री उपशांत महाराज एवं आर्यिका माता चल रही थी। उसके पीछे विधान के महापात्र, इंद्रर इंद्राणी बने पात्र एवं धर्म अनुरागी जन चल रहे थे। रास्ते मे जगह जगह रंगोली सजाकर शोभायात्रा की आगवानी तथा जैन समाज के प्रतिष्ठानों के बाहर श्रीजी की भक्ति भाव के साथ आरती करते हुए श्रीफल अर्पित किए गए।

विधानाचार्य, सहयोगियों, महापात्र सम्मानित- शोभा यात्रा के समापन के बाद समवशरण में विराजमान श्रीजी का अभिषेक पूजन करके उन्हें मंदिर जी में वापस ले जाकर विराजित किया गया। इस अवसर पर विधान के प्रतिष्ठाचार्य, सहयोगियों महापात्रो, इंद्र इंद्राणीओं के अलावा आयोजन में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर सहयोग देने वालों का आभार जताते हुए प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेट करके सम्मानित किया गया।

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